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जैन आगम : वनस्पति कोश
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है।
जमीन एवं पहाडियों की खाली भूमि में उत्पन्न हुआ पाया जाता red small fruit (एरावणिका कृष्ण लोहिताल्प फला)डलहन
एक स्थान पर (सूत्र स्थान० ४६१९१) मानते हैं कि ऐरावत का विवरण-इसका क्षुप एकवर्षायु ऊंचा, चिकना तथा अर्थ एरावणिका है जो काली, लाल और छोटे फल वाली है। क्षोदलिप्त रहता है। कभी-कभी यह झाडीदार या छोटे वृक्ष Glossary of Vegetable Drugs in Brhattrayi सदृश भी हो जाता है। पत्ते एकान्तर, चौडे, खण्डित ___Page 60 (त्रिपदानुत्तर-पाणिवत्) खण्ड ७ या अधिक एवं पत्रतट ऐरावतः। । लकुचवृक्षे, नागरङ्गे, क्षुद्रद्वीपान्तरखजूरे आरावत दन्तुर होता है। पुष्प द्विलिंगी तथा सवृन्तकाण्डज, एलाकरवीरे, एरावत फले। पुष्पव्यूहों में आते हैं, जिसमें पुंपुष्प पुष्पव्यूह से ऊपर के भाग
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १७०) में रहते हैं तथा स्त्रीपुष्प नीचे के भाग में रहते हैं। फल गोल- क्षुद्रखर्जूरी। स्त्री। भूखर्जूरिकायाम्। गोल, सघन, गुंबजदार लगते हैं तथा उन पर मुलायम-मुलायम
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १२०६) कांटे से होते हैं। फल पकने पर धूप की गरमी से फट जाते विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में एरावण शब्द गुच्छ वर्ग के है और बीज भूमि में गिर पड़ते हैं, उसी समय गुच्छों को अन्तर्गत है। ऊपर के पांच अर्थों में क्षुद्रखर्जूर अर्थ उपयुक्त तोडकर संग्रह करते हैं। प्रत्येक फल में तीन-तीन बीज होते लगता है क्योंकि इसके फल गच्छ रूप में लगते हैं। हैं।बीज गोल,आयताकार तथा कुछ चिपटे ४ से १२ मि० मि० भूखजूर का काण्ड भूमि के ऊपर नहीं होता। इसी का एक लंबे एक तरफ से चिपटे किन्तु दूसरी तरफ कुछ गोल लंबाई भेद और होता है जिसे (Phoenix Humilis royle) कहते की अपेक्षा २/३ चौडे एवं १/३ मोटे होते हैं। बीज का बाह्य हैं। यह प्रायः पांच फीट से ऊंचा नहीं होता। त्वक् पतला, मिदुर, चिकना, चमकीला, भूरे रंग का तथा
(वनौषधि रत्नाकर तृतीयभाग पृ० १५४) चितकबरा रहता है। इसका अन्तस्त्वक् पतला और मुलायम एक भूखजूर भी होता है जिसके काण्ड भूमि के ऊपर होता है। बीजावरण में ऊपर द्वारक के समीप एक सफेद बाह्य नहीं आते। देहरादून के घास के मैदानों में यह पाया जाता है, वृद्धि होती है, जिससे कुछ -कुछ ढंका हुआ वृन्तयु होता है। इसके फल खाये जाते हैं। (वनोषधि दर्शिका) बीजावरण को हटा देने पर स्थूल तथा पीताभ श्वेत भ्रूणपोष
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३३२) दिखाई देता है। जिसके अंदर तैलीय खाद्यपदार्थ संचित रहता राजनिघण्टुकार ने जो भूमिखर्जूरी का वर्णन किया है,यह है। भ्रूणपोष के मध्य में गर्भ होता है जिसमें दो पतले पत्रसदृश भारत में होने वाला खर्जूर है। बीजपत्र और उनके बीच छोटा भ्रूणाक्ष होता है। बीजों में नाम
(वनौषधि रत्नाकर तृतीय भाग पृ० १५३) मात्र की गंध एवं किंचित् तीता स्वाद होता है। (भाव०नि० गुडूच्यादि वर्ग० पृ० २९९, ३००)
एलवालुंकी एरावण
एलवालुंकी (एलवालुक) बालुका साग एरावण (ऐरावत) भूखर्जूरी, क्षुद्र खजूरी
प०१/४०/१ प० १/३७/४ एलवालक के पर्यायवाची नामविमर्श-एरावण शब्द स्पष्ट रूप से किसी निघंटु या शब्द
एलवालुक मैलेयं, सुगन्धि हरिवालुकम्। कोशों में वनस्पतिपरक अर्थ में नहीं मिला है। एकस्थान पर
ऐलवालुक मेलालु, कपित्थत्वच् मीरितम्॥१२०॥ एरावणिका शब्द मिलता है उससे अनुमान किया जा सकता
एलवालुक, ऐलेय, सुगंधि, हरिवालुक, ऐलवालुक, है कि एरावण शब्द भी है।
एलालु और कपित्थत्वम् ये सब संस्कृत नाम एलवालुक के बत AIRAVATA. Dalhana at one place हैं। (Sutrasthana 46.191) has described it as a blackish
(भाव०नि० कर्पूरादिवर्गपृ०२६२)
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