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जैन आगम वनस्पति कोश
शाक में संस्कार ( पुट) देने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। चित्रक का पुट दिया हुआ चोपतिया शाक विषमज्वर को नाश करने में द्विगुणित लाभ करता है। क्योंकि चोपतिया शाक त्रिदोषघ्न और ज्वर नाशक है और रक्त चित्रक भी विषम ज्वर नाशक है इसीलिए भगवान महावीर ने सिंह अणगार द्वारा रेवती के घर से यह संस्कारित शाक मंगाया था ।
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मिगमंस
मिगमंस (मृगमांस) कस्तूरी के दानें ।
मृगः । पुं । मृगनाभि । (कस्तूरि)
मृगनाभि के पर्यायवाची नाम
सू०१०/१२०
(शालिग्रामौषधशब्दसागरपृ० १४१ )
कस्तूरी मृगनाभिस्तु, मदनी गन्धचेलिका ।
वेधमुख्या च मार्जारी, सुभगा बहुगन्धदा । ।४७ || सहस्रवेधी श्यामा स्यात्, कामानन्दा मृगाण्डजा । कुरंगनाभी ललिता, मदो मृगमदस्तथा ।
श्यामली काममोदी च, विज्ञेयाऽष्टादशाह्वया । ।४८ || कस्तूरी मृगनाभि, मदनी, गन्धचेलिका, वेधमुख्या मार्जारी, सुभगा, बहुगन्धदा, सहस्रवेधी, श्यामा, कामानन्दा मृगाण्डजा, कुरङ्गनाभी, ललिता, मद, मृगमद श्यामली तथा काममोदी ये सब कस्तूरी के उन्नीस नाम हैं। (राज० नि०१२ / ४७.४८ पृ०४०४)
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अन्य भाषाओ में नाम
हि० - कस्तूरी मृगनाभि, मृगनाफा । बं० - मृगनाभी | ते० - कास्तूरी । क० - कस्तूरी । गु० - कस्तूरी । म० - कस्तूरी | फा० - मुष्क । अ० - मिस्क । अंo - Musk 1 (मुष्क)। ले० - Moskus (मोसकस) ।
उत्पत्ति स्थान - सब जाति के हिरणों से कस्तूरी नहीं निकलती । जिस हिरन से कस्तूरी निकलती है वह | मृग उत्तरी भारत, नेपाल, आसाम, काश्मीर, मध्यएशिया, तिब्बत, भूतान, चीन एवं रूस आदि स्थानों में ७००० से ८००० फीट की ऊंची पहाडी चोटियों पर सघन जंगलों में पाया जाता है। यह विशेषकर तिब्बत में अधिक होता है। विवरण - यह हिरन की जाति का बहुत सुहावना
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और सुंदर मृग होता है किन्तु न इसके सींग होते हैं और न दुम । यह मृग करीब २० इंच ऊंचा, लौह के समान गहरे धूसर वर्ण का, अत्यन्त सशंक स्वभाव का प्राणी होता है। इसके ऊपरी जबड़े में दो लंबे दंष्ट होते हैं जो बाहर नीचे की ओर हुक की तरह निकले रहते हैं। इसका मुंह लंबा, पैर पतले तथा सीधे एवं बाल रूखे और लंबे होते हैं। इसके लिंगेन्द्रिय के मणि को ढांकने वाले चमडे के प्रवर्धन से बनी हुई एक थैली होती है, जिसके सूखे हुये स्राव को कस्तूरी कहते हैं ।
नर हिरन में ही यह पाई जाती है। यह थैली नाभि के पास, नाभि एवं शिश्नावरण के बीच में स्थित रहती है । यह अंडाकार, १.७५ से ३ इंच लंबी, एवं १ से २ इंच चौड़ी होती है। इसके अग्रभाग में केशयुक्त एक छोटा-सा छिद्र होता है तथा पिछले भाग एक सिकुड़न-सी होती है जो शिश्नाग्रचर्म के मुख से मिल जाती है। इसके अंदर के चिकने आवरण की अनियमित तहों के कारण यह कई अपूर्ण विभागों में बंटी होती है। कस्तूरी युवावस्था के मृगों में उनके मदकाल में अधिक मात्रा में होती है तथा उसी समय उसकी शक्ति एवं गंध अधिक होती है। यह काल करीब १ महीने का होता है।
(भाव०नि० कर्पूरादि वर्ग पृ० १७८, १७६)
मेंढक मंस
मेंढकमंस (मेंढकमांस) मेंढासिंगी के फल का गूदा
सू०१०/१२०
मेण्ढः (कः) ।पुं । मेषे ।
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ८४३ ) विमर्श - मेंढक नाम मेष का है। मेष को हिन्दी में मेंढा कहते हैं। मेंढासिंगी (मेष शृंगी) का संक्षिप्त नाम मेंढा (मेष) है। इसका एक नाम मेषवल्ली भी है । इसलिए मेंढकमांस से मेढासिंगी का गूदा, यह अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
हम जिस वृक्ष को मेष श्रृंगी कहते हैं उसकी फलियों की आकृति बिल्कुल मेष (मेढा) के सींग के सदृश होती (निघंटु आदर्श उत्तरार्द्ध पृ० ३६) मेषशृंगी विषाणी स्यान्, मेषवल्ल्यजशृङ्गिका । मेषशृंगी, विषाणी, मेषवल्ली, अजश्रृंगिका ये सब
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