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जैन आगम : वनस्पति कोश
उव्वेहलिया उव्वेहलिया ( ) भ० २३/४ प० १/४८/५०
देखें दव्वहलिया शब्द।
विमर्श-प्रज्ञापना १/४७ और भगवती २३/४ में इसके स्थान पर दव्वहलिया शब्द है। प्रज्ञापना १/४८/५० में जो शब्द हैं वे ही शब्द प्रज्ञापना १/४७ में हैं। वहां उव्वेहलिया के स्थान पर दव्वहलिया शब्द है। इसलिए प्रस्तुत प्रकरण में दव्वहलिया शब्द उपयुक्त लगता है।
विवरण-खस तृणजातीय औषधि का क्षुप २ से ५ फुट तक ऊंचा एवं दृढ होता है। यह गुच्छवद्ध होकर उगता है। पत्ते सरकंडे के समान १ से २ फूट लंबे और पतले होते हैं। ये दो कतारों में तथा आधार पर परस्पराच्छादित रहते हैं।मूलीय पत्र कुछ अधिक लंबे रहते हैं। मध्य शिरा दबी हुई तथा पत्तों के किनारों पर दूर-दूर पर तीक्ष्ण कांटे रहते हैं। फूलों का घनहरा पीलापन या किंचित् लाली युक्त होता है। इसकी जड सुगंधित होती है। इसी को खस कहते हैं। ग्रीष्म ऋतु में इसके बने परदे एवं पंखों आदि का उपयोग किया जाता है। सुगंधि के लिए इसके इत्र का भी बहुत व्यवहार होता है।
(भाव०नि० पृ० २३९)
एक्कड एक्कड (इक्कट) इकडी
देखें इक्कड शब्द।
पं० १/४१/१
उसीर उसीर (उशीर) वीरण मूल,खस रा० ३० जीवा० ३/२८३ उशीर के पर्यायवाची नाम
वीरणस्य तु मूलं स्याद्, उशीरं नलदञ्च तत् अमृणालञ्च सेव्यञ्च, समगन्धिक मित्यपि॥
वीरण नामक घास के जड को खस कहते हैं। उसके संस्कृत नाम उशीर, नलद, अमृणाल, सेव्य और समगन्धिक ये सब हैं।
(भाव० नि० पृ० २३९) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-खस, वीरनमूल, गांडर, बेना। बं०-बेणरमूल, खसखस। म०-वाला। ग०-वालो। क०-मडिवाल। ते०वेट्टिवेर। फा०-रेशयेवाला, वीरवेवाला। अं०-Cuscus grass(कसकसग्रास)। ले०-Andropogon Muricatus Retz (एन्ड्रोपोगोन म्यूरिकॅटस् रेझ)।
एरंड
(चन्च
एरंड (एरण्ड) श्वेत एरण्ड, रेडी
भ० २१/१९ १० १/४२/२ एरण्ड के पर्यायवाची नाम
एरण्डस्तरुणः शुक्लश्चित्रो गन्धर्वहस्तकः। पञ्चाङ्गलो वर्धमान, आमण्डो दीर्थदण्डकः ॥२९५॥
तरुण, शुक्ल, चित्र, गन्धर्वहस्तक, पञ्चाङ्गुल, वर्धमान, आमण्ड, दीर्घदण्डक ये एरण्ड के पर्याय हैं।
(धन्व०नि०१/२९५ पृ०१०१) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-अरण्ड, एरंड, एरंडी, रेंडी। म०-एरंड, एरंडी। गु०-एरण्डो, एरंडियो, दिबेली। ते०-आमुडामु, एरंडमु। ता०-आमणक्कम्। मला०-चिट्टामणक्कु, आबणक्का।क०हरल। फा०-बेदंजीर, तुमे बेदंजीर। अ०-खिखा वनल खिर्बआ अ०-Castor oil plant(कॅस्टर ऑइल प्लान्ट)। ले०- Ricinus Communis Linn.(रिसिनस् कॉम्युनिस् लिन०) Fam. Euphorbiaceae(युफोर्विएसी)।
उत्पत्ति स्थान-प्रायः सब प्रान्तों में एरंड की खेती की जाती है। वह अपने आप ही मैदानों, सड़कों के किनारे परती
उत्पत्तिस्थान-यह देश के प्रायःसब प्रान्तों में पाया जाता है। यह अधिकतर खुले हुये दलदलवाले स्थानों में होता है।
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