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जैन आगम : वनस्पति कोश
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होती है।
(शा०नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० २५८)
गोत्त गोत्त (गोत्र) गोत्रवृक्ष, धामिन, धामन ।
प० १/४०/५ गोत्र के पर्यायवाची नाम
धन्वङ्गस्तु धनुर्वृक्षो, गोत्रवृक्षः सुतेजनः ।।६१।।
धन्वङ्ग, धनुर्वृक्ष, गोत्रवृक्ष तथा सुतेजन ये धामिन के संस्कृत नाम हैं। (भाव० नि० वटादिवर्ग० पृ० ५४०) अन्य भाषाओं के नाम
हि०-धामिन, धामन। म०-धामणी चा वृक्ष । गु०-धामण। बं०-धाम ना गाछ। ते०-चरचि । ता०-सहचि, थड़। क०-बुतले। ले०-Grewia tiliaefolia Vahl. (ग्रोविआ टिलीफोलिआ)।
अण्डाकार, मध्यशिरा के दोनों ओर के भाग छोटे-बड़े, प्रायः कुण्ठिताग्र, गोलदन्तुर, आधार का भाग एक ओर अत्यधिक बढ़ा हुआ एवं १ इंच लंबे वृन्त से युक्त होते हैं। पुष्प सफेद रंग के छोटे-छोटे फूलों के गुच्छे लगते हैं, जिनके भीतर पीलापन झलकता है। फल २ से ४ खंड के, मटर के समान एवं पकने पर काले पड़ जाते हैं। इनके फल खाने लायक खट्टे होते हैं। इसकी छाल का उपयोग किया जाता है। यह बाहर से धूसर या गहरे भूरे रंग की तथा मोटी होती है। पत्तों को बाल धोने के लिए काम में लाया जाता है। लकड़ी का भी उपयोग फर्नीचर इत्यादि बनाने के लिये किया जाता है।
(भाव० नि० वटादिवर्ग० पृ० ५४१)
गोधूम
/१२६: २१/६ प० १/४५/१
TRITICUM VULGARE VILL LINN.
.SATIVUM,LAM.
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उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय पहाड़ के निचले भागों में जमुना से नेपाल तक ४००० फीट की ऊंचाई तक एवं मध्यभारत, मद्रास, बिहार एवं उड़ीसा में पाया जाता है।
विवरण-इसका वृक्ष मध्यमाकार का होता है। पत्ते २ से ५ इंच तक लंबे तथा १ से ४ इंच तक चौडे
गोधूम के पर्यायवाची नाम
गोधूमो यवक श्चैव, हड्म्बो म्लेच्छभोजनं।। गिरिजः सत्यनामा च, रसिकश्च प्रकीर्तितः ।।५।।
गोधूम, यवक, हुडुम्ब, म्लेच्छभोजन, गिरिज, सत्यनामा, रसिक ये गोधूम के पर्याय हैं।
(धन्व०नि०६/८५ पृ० २६०)
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