Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 302
________________ 282 जैन आगम : वनस्पति कोश मरिच, गोल मिर्च, चोखा मरिच। बं०-मरिच, गोल श्यामम् ।क्ली० । मरिचे। सिन्धुलवणे। श्यामाके। मरिच, गोलमिरच, मुरिच, मोरिच | म०-मिरे, काली वृद्धदारके । कोकिले । धुस्तूरवृक्षे । पीलुवृक्षे । दमनकवृक्षे । मिरी क०-ओल्ले मेणसु। गु०-मरि, मरितीखा, मरी, गंधतृणे। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०७८६) काला मरी। ते०-मरिचमु, शव्यमु, मरियलु । ता-मोलह विमर्श-साम (श्याम) शब्द के ऊपर ६ अर्थ शेव्वियम् । पं०-काली मरिच, गोल मिरिच । म०-काली बतलाये गए हैं। प्रस्तुत प्रकरण में सामशब्द गुच्छ वर्ग मरिच। मोटिया०-स्पोट। काश्मी०-मर्ज। सिंधी- के अन्तर्गत है। इसलिए यहां मरिच (कबावचीनी) अर्थ गूलमिरीएं। मला०-लइ, कुरुमुलक, कुरू मिलगु। ग्रहण कर रहे हैं। अफ०-दारुगर्म। फा0-पिल्पिले अस्वद, फिल्फिल मरिच के पर्यायवाची नामअस्वाद, स्याहगिर्द, हलपिलागिर्द, फिल्फिलस्याह। कङ्कोलकं कृतफलं, कोलकं कटुकं फलम् । अ०-फिल्फिले अवीद, फिलफिलगिर्द, फिल, विद्वेष्यं स्थूलमरिचं, कर्कोलं माधवोचितम् ।। फिलस्सोदाय, पिल पिलेगिर्द। अंo-Black, pepper कङ को लं कट् फलं प्रोक्तं, मरीचं (बलॅक पेपर)। ले०-Pipernigrum Linn (पाइपर नाइग्रम रुद्रसम्मितम् ।।७६ ।।। लिन०) Fam. Piperaceae (पाइपरेसी)। कङ्कोलक, कृतफल, कोलक, कटुक, फल, उत्पत्ति स्थान-दक्षिण कोकण, आसाम, मलाबार विद्वेष्य, स्थूलमरिच, कर्कोल, माधवोचित, कङ्कोल, तथा मलाया और स्याम इसका उत्पत्ति स्थान है। दक्षिण कट्फल तथा मरिच ये सब कंकोल के ग्यारह नाम हैं। भारत के उष्ण और आर्द्रभागों में त्रिवांकुर, मलाबार, (राज०नि०१२/७६ पृ०४११) आदि खादर तथा गीली जमीन में यह अधिकता से उत्पन्न होती है, कच्छार, सिलहट, दार्जिलिंग सहारनपुर और देहरादून के पास भी इसकी खेती की जाती है। वर्षाऋतु में इसकी लता को पान के बेल के समान छोटे-छोटे टुकड़े कर बड़े-बड़े वृक्षों की जड़ में गाड़ देते हैं। ये लतारूप से बढकर वृक्षों का सहारा पाने से उनके ऊपर चढ़ जाती हैं। विवरण-पत्ते ५ से ७ इंच लंबे तथा २ से ५ इंच चौड़े, गोलाकार, नुकीले तथा पान के पत्तों के आकार के होते हैं। फल गुच्छों में लगते हैं। कच्ची अवस्था में फल हरे रंग के होते हैं। उस अवस्था में चरपराहट कम होती है। जब पकने पर आते हैं तब उन का रंग नारंग लाल हो जाता है। उसी समय तोड़कर सुखा लेते हैं। सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं। पूरे पक जाने पर 503. Pipir nigrum Linn. (नानाविक) तोड़ने से चरपराहट कम हो जाती है। (भाव०नि० हरीतक्यादिवर्ग० पृ० १७) अन्य भाषाओं में नाम हि०-शीतलचीनी, कबाबचीनी, कंकोल। साम बं०-कोकला। म०-कंकोल, कापुर चीनी, कबाबचीनी। साम (श्याम) कंकोल, कबावचीनी, शीतलचीनी गु०-कंकोल, चणकवात। तै०-कबाबचीनी। फा० कबावह अ०-कवाबाहव्वउल्लरूस अं०-Cubeb Pepper प०१/३७/४ (क्युवेव पेपर)। ले०-Cubeba Offici Nalis (क्युबेबा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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