Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 322
________________ 302 जैन आगम : वनस्पति कोश हैं। सैरीयः (कः) ।पुं। श्वेतझिण्ट्याम् विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण (प०१/३५/१) में सेलु (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११५१) शब्द एकास्थिवर्ग के अन्तर्गत है। लिसोडा की गुठली सैरेयः (क:) पुं० । श्वेतझिण्ट्याम् । होती है इसलिए यहां वरुण अर्थ ग्रहण न कर बहुबार (लिसोडा) अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११५१) विमर्श-निघंटुओं में सैरेयक शब्द के पर्यायवाची विवरण-फूल छोटा उभयलिङ्ग, विशिष्ट श्वेतवर्ण नाम मिलते हैं पर सैरीयक शब्द के नहीं मिलते हैं। गुच्छसमूह में, पुष्प दंड में अनेक शाखायें होती हैं। फल इसलिए संस्कृतरूप सैरेयक के पर्यायवाची नाम दे रहे भी गुच्छ समूह में लगते हैं। फल में गुठली १/२ से १ इंच लम्बी होती है। सैरेयक के पर्यायवाची नाम (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०१६२) सैरेयक: श्वेतपुष्पः, सैरेयः, कटसारिका। सहाचरः सहचरः, स च भिन्द्यपि कथ्यते।। सेवाल सैरेयक, श्वेतपुष्प, सैरेय, कटसारिका, सहाचर, सेवाल (शैवाल, सैवाल) सेवार प०१/३८/२; १/४६ सहचर ये सब सफेद पुष्पवाली कटसरैया के संस्कृत नाम सफद पुष्पवाला कटसरया क सस्कृत नाम शैवाल के पर्यायवाची नाम शैवालं जलनीली स्याच्छैवलं जलजञ्च तत् ।। (भाव०नि० पुष्पवर्ग पृ०५०२) शैवाल, जलनीली, शैवाल, जलज ये शैवाल के अन्य भाषाओं में नाम संस्कृत नाम हैं। ले०-Barleria cristata linn (बार्लेरिया क्रिस्टेटा)। स्टटा)। अन्य भाषाओं में नामदेखें कोरंटय शब्द । हि०-सेवार । म०-शेवाल | गु०-जलसर्पोलियन । ते०-पुनत्सू । ले०-Vellisneriaspiralis linn (व लिसनेरिया सेरिया गुम्म स्पाइरेलिस) Fam. Hydrocharitaceae (हाइड्रोचेरिटेसी)। सेरिया गुम्म (सैरीय गुल्म) श्वेतपुष्प वालीकटसरैया। उत्पत्ति स्थान-यह समस्त भारत में होता है। विवरण-इसके क्षुप जल में डुबे हुए, काण्डहीन का गुल्म तथा आपस में गुथे हुए होते हैं। पत्ते रेखाकार, बहुत लम्बे जीवा०३/५८० देखें सेरियय शब्द। तथा पारभाषक होते हैं। पुं. पुष्प छोटे, पत्रावृत व्यूह में होते हैं और बहुत छोटे तथा संख्या में बहुत होते हैं। परिपक्व होने पर वे व्यूह से अलग होकर जल के उपर सेरुताल वण आ जाते हैं तथा खिल जाते हैं। स्त्री पुष्प, लंबे कुडलित सेरुताल वण ( ) जं०२/६ वृन्त से युक्त होते हैं। तथा परिपाक होने पर कुंडल विमर्श-उपलब्ध निघंटुओं तथा शब्दकोशों में खुलकर वे ऊपर आ जाते हैं तथा परिवेचन होने पर फिर सेरुताल शब्द नहीं मिला है। वृन्त का कुडंल होकर नीचे चले जाते हैं। (भाव०नि० पुष्प वर्ग०पृ० ४८६, ४८८) सेलु सिवार भी जल के ऊपर बालों सी आच्छादित सेलु (शेलु) लिसोडा भ०२२/२ जीवा०१/७१ प० १/३५/१ रहती है। यह कई प्रकार की होती है। सिवार इस देश में चीनी साफ करने में विशेष करके काम में ली जाती सेलुः ।पुं। वरुणवृक्षे, बहुबारवृक्षे। (शा०नि० पृ० ६१८) (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११५०) Pr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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