Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 323
________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 303 दस०२/६ सेवालगुम्म हड सेवालगुम्म (शैवालगुल्म) सेवार का गुल्म हड (हठ) जलकुंभी जीवा०३/५८० देखें हढ शब्द। देखें सेवाल शब्द । हढ सोगंधिय हढ (हठ) जलकुंभी भ०२३/८ प०१/४६ सोगंधिय (सौगन्धिक) चंद्र विकासी नील कमल हठः ।पुं। शैवाले जलकुम्भिकायाम् देखें सुगंधिय शब्द। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११८१) जीवा०३/२८६, २१ हठ के पर्यायवाची नाम वारिपर्णी तोयवृक्षो, हठः पानीयपृष्ठजा। कुली, कम्भी तोयकुंभी, ढंढणो वृकधूमकः ।।१४६७ ।। सोत्थियसाय वारिपर्णी, तोयवृक्ष, हठ, पानीयपृष्ठजा, कुली सोत्थियसाय (स्वस्तिक शाक) सुनिषण्णक शाक कुम्भी, तोयकुंभी, ढंढण और वृकधूमक ये वारिपर्णी के भ २०/२० प०१/४५/२ पर्याय हैं। (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग पृ०२७१, २७२) स्वस्तिक के पर्यायवाची नाम अन्य भाषाओं में नामशितिवारः सूचिपत्रः सूच्याहः सुनिषण्णकः। ____हिo-जलकुंभी, कुंभी (काई)। बं०-पाना, श्रीवारकःशितिवरः स्वस्तिकः कुक्कुटः टोकापाना। म०-जलभांडवी. प्रश्नी। गु०-जलकुंभी। शिखी।।१५५ ।। क०-होवल। ता०-आकाश तामरै। तेल-तुटिकर। सूचिपत्र, सूच्याह्व. सुनिषण्णक, श्रीवारक, शितिवर अंo-The Westerlettuce (दी वेस्टर लेट्यूस)।ले०-Pistia स्वास्तक. कुक्कुट आर शिखी ये शितिवार के पर्यायवाची Stratiotes linn (पिस्टिया स्ट्रेटियोटीस्)| Fam. नाम हैं। (घन्च०नि०१/१५५ पृ०६१)। Pontederiaceae (पॉटेडेयेसी)। अन्य भाषाओं में नाम उत्पत्ति स्थान-यह समस्त भारत में 'तालाबों' हि०-शिरिआरि, चौपतिया, शितिवार। बं०- तथा गढ़ों में जहां जल जमा रहता है पायी जाती है। शुयुनिशाक । ले०-Marsilea grandifolialinn (मार्सिलिआ अफ्रीका व अमेरीका आदि में भी होती है। ग्रान्डिफोलिया) या Marsileaquadrifolia linn (मार्सिलिआ विवरण-पुष्पवर्ण एवं सूरणकुल के इसके प्रायः क्वाड्रीफोलिया)। काण्डहीन, अनेक अधोमूल युक्त क्षुप, काई जैसे उत्पत्ति स्थान-बंग देश में तालाबों के किनारे, जलाशयों पर छाये हए होते हैं। पत्रोदभव के पूर्व इसकी गीली, जमीन में चावल के खेतों में सर्वत्र पैदा होता है। नलिकाकार डंडी, मध्य भाग में फूली हुई मोटी कुंभ या __विवरण-यह सुनिषणक, शाककुल का जलज कलश जैसी होने से इसे कुंभिका नाम दिया गया है। उद्भिदतालाबों के किनारे होता है। क्षुप १ फुट से ऊंचा पत्रक प्रत्येक डंडी पर ३ या ४ एक साथ, वृन्तरहित, नहीं जाता। पत्रों का वृन्त नोकीला व पत्र ४ भागों में से ४ इंच लम्बे, मांसल, गोलाकार, गाढे, नीलवर्ण के, विभक्त, यह कर्दम के ऊपर फैला होता है। आकार में दोनों ओर सूक्ष्मरोमयुक्त होते हैं। पुष्प वर्षाकाल में, पत्रों चांगेरी (खट्टीबूटी) के तुल्य होता है, केवल पत्रों में के बीच से जो डंडी सी निकलती है उन पर फल बेंगनी अम्लत्व नहीं होता। शीतकाल में (Spore) बीजाणु बीज रंग के लंबगोल, एक खंडयुक्त प्रायः गुच्छों में लगते हैं। होते हैं। बंग देश में सुनिषण्णक शाक अधिक खाया जाता बीजाशय वर्षा के बाद इसका फल अंडाकार, पतली (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ०३६१) छाल.या झिल्लीयक्त होता है, जिसमें अनेक लम्बे बीज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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