Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 327
________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 307 हलिद्दा चेनाब से लेकर अवध तक जंगली रूप में तथा भारत हरियाल के सभी प्रान्तों में एवं वर्मा में लगाया हुआ मिलता है। हरियाल (हरिताल) दूर्वा, दूब विवरण-इसका वृक्ष साधारण वृक्षों के समान रा०२८ जीवा०३/२८१ उत्त०३४/०८ छोटा २० से २५ फुट ऊंचा होता है । छाल चिकनी, मोटी, कार्कयुक्त, भूरेरंग की एवं लम्बाई में फटी हुई और हरितालः-दूळयाम् (वैद्यक निघंटु) (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०११८४) लकड़ी कमजोर होती है। पत्ते संयुक्त, प्रायः त्रिपक्षवत् तथा १ से ३ फीट क्वचिद् ५ फीट तक लम्बे होते हैं। पत्रक अंडाकार, लट्वाकार विपरीत एवं करीब १/२ से हरेणुया ३/४ इंच लम्बे होते हैं। कार्तिक महिने से वसंत ऋतु हरेणुया (हरेणुका) रेणुका, संभालू का बीज। के आरंभ तक फूलों के गुच्छे टहनियों के अंत में दिखाई भ०२३/८ पड़ते हैं। पुष्प श्वेतवर्ण के तथा मधु की तरह गंध वाले देखें हरतणुया शब्द। होते हैं। फलियां गोल, त्रिकोणाकार, अंगुलि प्रमाण मोटी, ६ रेखाओं से युक्त होती हैं। उनमें सफेद सपक्ष त्रिकोणाकार तथा लगभग १ इंच लम्बे बीज होते हैं। बीजों को सफेद मरिच भी कहते हैं। इससे गोंद भी निकलता है जो पहले दुधिया रहता है किन्तु बाद में वायु का संपर्क हलिद्दा (हरिद्रा) हलदी जीवा०३/२८१ प०१/४८/२ होने पर ऊपर से गुलाबी या लाल हो जाता है। इसकी हरिद्रा के पर्यायवाची नामकच्ची सेमों का साग और अचार बनाते हैं। इसकी छाल हरिद्रा काञ्चनी पीता, निशाख्या वरवर्णिनी। के रेशों से कागज, चटाई, डोरी आदि बनाते हैं। कृमिघ्नी हलदी योषितप्रिया, हट्टविलासिनी। जानवर विशेषकर ऊंट इसकी टहनियों को खाते हैं। हरिद्रा, काञ्चनी, पीता, निशाख्या (रात्रिवाची सभी लाल, काले एवं श्वेत पुष्प भेद से सहजन ३ प्रकार शब्द) वरवर्णिनी, कृमिघ्नी, हलदी, योषिप्रिया और का माना जाता है। अधिकांश श्वेत पुष्प का ही सहजन हट्टविलासिनी ये नाम हलदी के हैं। देखा जाता है। संभव है स्थान भेद से कहीं-कहीं रक्त (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग०पृ०११४) तथा श्यामवर्ण के भी सहजन प्राप्त होते हैं। इसकी फली अन्य भाषाओं में नामका साग आंत्रकृमि प्रतिबंधक मामते हैं। इसके कोमल हिo-हलदी, हरदी, हर्दी, हल्दी। बं०-हलुद । पत्तों का साग खाने से शौच साफ होता है। म०-हलद। गु०-हलदर क०-अरसिन, अरिसिन। (भाव०नि०गुडूच्यादिवर्ग० पृ०३४०) ते०--पसुपु । पं०-हलदी, हलदर, हलज । ता०-मंजल। मलाo-मन्जल। फा०-जर्दचोब । अ०-उरुकुरसफ। हरितग अं०-Turmeric (टमेरिक)। ले०-Curcuma Longa line (कक्र्युमा लॉगा लिन०)| Fam. Zingiberaceae हरितग (हरीतक) हरड भ०२२/२ (झिंजिबेरेंसी)। विमर्श-प्रज्ञापना १/३५/२ में हरडय शब्द है। भगवती २२/२ में हरडय के स्थान पर हरितग शब्द है। उत्पत्ति स्थान-प्रायः सब प्रान्तों के खेत में रोपण की हरडय का अर्थ हरें किया गया है। इसलिए यहां भी जाती है। लेकिन बम्बई, मद्रास तथा बंगाल में इसकी हरितग शब्द का अर्थ हर किया जा रहा है। विशेष रूप से उपज की जाती है। चीन एवं जावा आदि देखें हरडय शब्द। देशों में भी इसकी उपज की जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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