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जैन आगम : वनस्पति कोश
सीयउरय
सीवण्णी सीयउरय (शीतमूलक) खस प०१/३७/३ सीवण्णी (श्रीपर्णी) कायफल विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में सीयउरय शब्द गुच्छवर्ग
भ०२२/२ जीवा०१/७१ प०१/३५/३ के अन्तर्गत है। वीरण के पुष्प गुच्छ रूप में आते हैं। वीरण श्रीपर्णी के पर्यायवाची नामकी जड खस होती है।
सोमवल्को महावल्कः, कट्फलः सोमपादपः । शीतमूलकम् ।क्ली० [उशीरे।
श्रीपणी कुमुदा कुम्भा, भद्रा भद्रवतीति च।।११३७।। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०१०५२) महाकच्छो महाकुम्भा, कुम्भीका रोहिणी तथा।। शीतमूलक के पर्यायवाची नाम
सोमवल्क, महावल्क, कट्फल, सोमपादप, श्रीपर्णी, उशीरं वीरणं सेव्यमभयं समगन्धिकम।
कुमुदा, कुम्भा, भद्रा, भद्रवती, महाकच्छ, महाकुम्भा, बहुमूलं, वीरतरु र्वीरं वीरणमूलिका ।।१३६८ // कुम्भीका, रोहिणी ये पर्याय कट्फल के हैं। रणप्रियं शीतमूल ममृणालं मृणालकम् ।।१३६६ //
(कैयदेव नि०ओधिवर्ग०पृ२१०) उशीर, वीरण, सेव्य, अभय समगन्धिक, बहुमूल, वीरतरु, वीर, वीरणमूलिका, रणप्रिय, शीतमूल, अमृणाल और मृणाल ये पर्याय उशीर के हैं।
(कैय०नि० ओषधिवर्ग०पृ०२५४) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-खस, गांडर की जड़, पन्नि । म०-वाला। गु०-वालो । बं०-खस, वेना, खसखस । अंo-Cuscus (कुसकुस) ले०-Andropogon Muricatus (एन्ड्रोपोगान म्यूरिकेटस) A.Squarrosus (ए० स्क्वे रोसस्)।
उत्पत्ति स्थान-यह दक्षिण भारत, मैसूर, बंगाल, राजपूताना, छोटानागपुर आदि प्रदेशों में विशेषतः नदी-नालों के उपकूल में एवं जलप्रायः स्थानों में प्रचुरता से पाया जाता है।
विवरण-यह कर्पूरादि वर्ग एवं नैसर्गिक क्रमानुसार यवकुल के वीरण (गांडर) नामक बहुवर्षायु तृण विशेष की जड़ है। इसकी जड़ें जमीन में २ फीट से भी अधिक गहरी घुसी हुई होती है। इसमें एक प्रकार की मनमोहक सुगंध आती है। इसका कांड २ से ५ फुट ऊंचा एवं
एकटा हुआ समूहबद्ध होता है। पत्ते १ से २ फीट, सीधे, लम्बे, पतले
अन्य भाषाओं में नामसरकंडे जैसे तथा पुष्पदंड ४ से १२ इंच लम्बा, रक्ताभ
हि०-काय फर, कायफल, काफल । पीतवर्ण का होता है। वर्षाकाल में यह फलता फूलता है।
बं०-कायछाल, कायफल, कट्फल | क०-किरिशिवनि। (धन्च०वनौषधि, विशेषांक भाग २ पृ०३५२)
ते०-केदर्यमु। म०-कायफल। मा०-कायफल | गु०-कायफल | पं०-कायफल ।खासिया०-डिंगसोलिर। ताo-मरुदम्पतै। फा०-दारशीशान । अ०-उदुलबर्क,
Ratna
मन
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