Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 316
________________ 296 जैन आगम : वनस्पति कोश इलाका, पश्चिमघाट नीलगिरी, मलावार, बंगाल, बिहार, बनता है। सुवर्णिका शब्द मिलता है। प्रस्तुत सुसुवर्णिका राजस्थान, आबू आदि में बोयी जाती या नैसर्गिक होती में सुशब्द अतिरिक्त है। है। सुवर्णिका स्त्री। स्वर्णजीवन्त्याम् ।। वैद्यक शब्द सिंधु पृ०११४२) हेमा हेमवती सौम्या, तृणग्रन्थि हिमाश्रया।। स्वर्णपर्णी सुजीवन्ती, स्वर्णजीवा सुवर्णिका ।।४२।। हेमपुष्पी स्वर्णलता, स्वर्णजीवन्तिका च सा हेमवल्ली हेमलता, नामान्यस्या श्चतुर्दश ।।४३ ।। हेमा, हेमवती, सौम्या, तृणग्रन्थि, हिमाश्रया, स्वर्णपर्णी, सुजीवन्ती, स्वर्णजीवा, सुवर्णिका, हेमपुष्पी, स्वर्णलता, स्वर्णजीवन्तिका, हेमवल्ली, हेमलता तथा स्वर्णजीवन्ती ये सब स्वर्णजीवन्ती के चौदह नाम हैं। (राज०नि०वर्ग ३/४२,४३ पृ०३६) अन्य भाषाओं में नाम हि०-चीवन्तरी, जिवसाग। म०-जोई वंसी। गु०-जिवन्ती | बं०-जीवन्ती, जिवै । ले०-Dendrobium macraei (डेंड्रो बियम मेक्रीई)। उत्पत्ति स्थान-यह बंगाल में प्रचुरता से तथा हिमालय पर, खासिया पहाड़ी, दक्षिण में पश्चिम घाट, मद्रास, नीलगिरि, सीलोन एवं वर्मा, मलाया आदि में विवरण-पीतपुष्पी के पुष्प तुरही सदृश, नीचे झुके पायी जाती है। हुए होते हैं। इसका क्षुप सूक्ष्म रोमश, खड़ा, कोणयुक्त, विवरण-यह बंगाल की जीवन्ती कहलाती है। वक्र हरितशाखा । पत्र एकान्तर १ से ३ इंच लम्बे अंडाकार वहां इसका शाक खूब बनाया जाता है। कोई कोई इसे नोकदार, दोनों ओर फीके हरे, लगभग ७ युग्म दलयुक्त। __ ही अष्टवर्ग का जीवक मानते हैं। पुष्प एकाकी या मंजरी पर सघन, तेजस्वी, पीतवर्ण के बंगीय रास्ना कुल की यह लता प्रायः बांदे के रूप सुगंधयुक्त, पुष्पाभ्यन्तर कोष नलिकाकार, लगभग १/२ में वृक्षों (विशेषतः जामुन के वृक्षों) पर चढ़ी हुई पाई जाती इंच लम्बा । फल गोलाकार १/२ इंच व्यास का होता है। है। इसके कांड-वांस के कांड जैसे पर्वयुक्त, किन्तु इसके कांड की छाल धूसिरवर्ण की होती है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ०२५५, २५६) कोमल, सुवर्ण सदृश तेजस्वी, नीचे की ओर लटकते हुए, २ से ३ फीट लम्बे होते हैं। तथा काण्ड पर विभिन्न दूरी पर मूलकाकार, कुछ दबी हुई, चमकीली २ से २.५ इंच सुहिरण्णिया कुसुम लम्बी शाखाएं होती हैं, जो दोनों ओर छोर पर पतली सुहिरणिया (सुहिरण्यिका) स्वर्ण जीवंती होती है। पत्र उक्त शाखाओं या कूटकंद के अग्रभाग में रा०२८ जीवा०३/२८१ प०१७/१२७ एकाकी, कोमल, लालरंग के ४ से ८ इंच लम्बे विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में पीले रंग की उपमा के लगभग १ इंच चौड़े, रेखाकार, आयताकार कुण्ठिताग्र लिए 'सुहिरण्णिया कुसुम' शब्द का प्रयोग हुआ है। स्वर्ण एवं अनेक पतली शिराओं से युक्त; पुष्प पत्र कोण से जीवंती के पुष्प पीले होते हैं । हिरण्य सुवर्ण का पर्यायवाची निकले हुए (वर्षा ऋतु में) ३/४ से १ इंच लम्बे, नाम है। सुहिरण्यिका का पर्यायवाची सुसुवर्णिका रूप श्वेत, किन्तु किनारों पर पीतवर्णयुक्त, संख्या में १ से ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370