Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 311
________________ जैन आगम : वनस्पति कोश 291 सीसम. अजूरी। अं0-Box Myrtle (वाक्स मिर्टल)| Bay terry बि (भाव०नि०वटादिवर्ग०पृ०५२२) बेरी) ले०-Myricanagi Thumb (मायरिकानेगी) Fam. अन्य भाषाओं में नामmyricaceae (मायरिकेसी)। हि०-सीसम, कपिलवर्ण शीषम, शीशो, शीसव । उत्पत्ति स्थान-यह हिमालय के साधारण उष्ण बं०-शिस् । म०-शिसव | गृ०-सीस । क०-अगरूगिड। प्रदेशों में रादी से पूर्व की ओर, खासिया पहाड़ सिलहट तेo-सिसुप । ताo-गेट्टे । ले०-Dalbergia Sissoo Roxb तक, ३ से ६ हजार फीट के बीच पाया जाता है और (डालवर्जिया सिस्सू) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी)। सिंगापुर में भी इसके वृक्ष देखने में आते हैं। चीन तथा जापान में इसकी बहुत उपज होती है। विवरण-इसके मध्यम ऊचाई के सदा हरित वृक्ष होते हैं। छाल बादामी धूसर तथा कृष्णाभ, भारी, सुगंधित, करीब १/२ इंच मोटी और खुरदरी होती है। काष्ठ १/२ इंच से १ इंच मोटा, बिना रेशे का और रक्ताभ बादामी होता है। पत्रनाल, मंजरी तथा नवीन शाखाओं पर बादामी रोमवरण होता है। पत्ते ४ से ८ इंच लम्बे तथा १.५ से २ इंच चौड़े, ऊपर से भालाकार अथवा कुछ कुछ आयताकार भी और उनके अधः पृष्ठ प्रायः मुरचई रंग के होते हैं। फूल लाल । फल १/२ इंच लम्बें, अण्डाकार, कुछ चिपटे, पृष्ठ पर दानेदार और पकने पर रक्ताभ या पीताभ बादामी होते हैं। फलों में मोम की तरह एक तेल होता है। ये फल स्वाद में कुछ खट्टे होते है। इन्हें सिल्लहट में सोफी कहते हैं, जिन्हें लोग खाते हैं यद्यपि उत्पत्ति स्थान-सीसो के वृक्ष प्रायः सब प्रान्तों में इस वृक्ष का नाम कायफल है तबभी औषधार्थ इसकी छाल लगाये जाते हैं तथा पश्चिम हिमालय में ४००० फीट तक, का ही प्रयोग कायफल के नाम से जाना जाता है। इसे नेपाल की तराई, सिक्किम तथा ऊपरी आसाम के जंगलों सूंघने पर छींक आती है। तथा इसे जल में डालने पर में पाये जाते हैं। जल लाल हो जाता है। आधुनिक विद्वान् इसके फल का विवरण-इसका वृक्ष बड़ा और विशाल हुआ करता भी औषधार्थ प्रयोग बतलाते हैं। है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है। इसकी लकड़ी से (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग०पृ० १००) बहुत सुंदर संदूक, पलंग प्रभृति अनेक वस्तुएं तैयार होती हैं। इसके पत्ते गोल, नोकदार, बेर के पत्तों के समान सीसवा पर इनसे कुछ बड़े तथा पाढी के पत्तों के समान होते हैं। ये चिकने और ऊपर से चमकीले होते हैं। फूल बहुत सीसवा (शिंशपा) सीसम छोटे-छोटे गुच्छों में और फली लम्बी पतली और चिपटी भ०२२/२ प०१/३५/३ . होती है। बीज छोटे-छोटे और चिपटे होते हैं। इसकी शिंशपा के पर्यायवाची नाम लकड़ी श्यामता और ललाई लिए भूरे रंग की दृढ़ होती शिंशपा पिच्छिला श्यामा, कृष्णसारा च सा गुरु । है। शिंशपा, पिच्छिला, श्यामा, कष्णसारा-ये शिंशपा (भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ०५२२) के पर्यायवाची नाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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