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जैन आगम : वनस्पति कोश
अन्य भाषाओं में नाम
विमर्श-विमय शब्द निघंटुओं और उपलब्ध हि०-वासंती, नेवारी, नेवारी, निवाडी। आयुर्वेदीय शब्द कोषों में नहीं मिला है। विमल शब्द बं०-वासन्ती, नेपाली, बदकूद, नवमल्लिका । गु०-कुन्द। मिलता है। प्रस्तुत प्रकरण में विमय शब्द पर्वक वर्ग में म०-कुसर। संता०-गदाहुंडबहा। त०-नागमल्ली। है। विमल पर्वक वनस्पति है। इसलिए विमल का अर्थ तेल-अदवी भल्ले, नामभल्ल । नु०-बोना मोलि, नियालो। ग्रहण कर रहे हैं। कना०-दोजु कमल्लिगे। बं०-कुन्दी, कुसर । विमल (विमल) पद्मकाष्ठ, पदमाख ले०-Jasminumarboresecns Roxb (जमिनम् आर बोरे विमलम् ।क्ली० | पद्मकाष्ठे सेनस) Fam. Oleaceae (ओलिएसी)।
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ६७७) उत्पत्ति स्थान-वासंती के झाड गंगाजी के ऊर्ध्वप्रदेश के मैदान में ३००० फीट की ऊंचाई पर बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश, दक्षिणी भारत की गंजम और विजिगापटम में अधिक होते हैं।
विवरण-यह हारसिंगरादि कुल की वासन्ती की सुन्दर झाड़ी वृक्ष के सदृश होती है। चौड़े पान युक्त, बडी, लगभग खडी उलझी हुई झाडी। कांड की ऊंचाई ५ से ७ फुट । पान अभिमुख, सादे, २ से ३ इंच लंबे या ३ से ५ इंच लंबे) और २ से ३ इंच चौड़े। लंबगोल, तीक्ष्ण, नोकदार । पत्रवृन्त लंगभग आधा इंच लंबा, प्रायः कोमल । पुष्प १ से १.५ इंच व्यास के, सफेद या गुलाबी सुगंधित । मिश्र मंजरी, रूंएदार, शिथिल, ३ शाखायुक्त। पुष्पान्तर नलिका लगभग आधा इंच लंबी। पक्व गर्भकोष सामान्यतः एकाकी, लंबगोल या अंडाकार प्रायः मुडा हुआ, लगभग आधा इंच लंबा, पकने पर काला। वसंत काल में होने से वासन्ती कहा गया है।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० १६५, १६६)
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पुष्प
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विभंगु विभंगु (
प० १/४२/२ विमर्श-प्रज्ञापना १/४८/४६ तथा भगवती सूत्र में विभंगु के स्थान पर विहंगु शब्द है। दोनों का अर्थ समान है। उपलब्ध निघंटुओं तथा शब्दकोशों में इस शब्द का अर्थ नहीं मिला है।
विमल के पर्यायवाची नाम
पद्मकाष्ठं पद्मवर्णं, पद्मकं हेमपद्मकम् ।।१४०० ।। सुप्रभो विमलश्चारु: शीतवीर्यो मरुच्छिवः। पीतरक्तः पद्मगन्धिः, पाटलापुष्पवर्णकः ।।१४०१।।
पदमकाष्ठ, पदमवर्ण, पदमक, हेमपदमक, सुप्रभ, विमल, चारु, शीतवीर्य, मरुच्छिव, पीतरक्त, पदमगन्धि, पाटलापुष्पवर्णक ये पदमकाष्ठ के पर्याय हैं।
(कैयदेव नि० ओषधिवर्ग पृ० २५६, २६०) अन्य भाषाओं में नाम
हि०--पद्माक, पद्माख, पदुमकाठ, फाजा।
विमय विमय (विमल) पद्मकाष्ठ, पद्माख प० १/४१/२
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