Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 290
________________ 270 रंग की झांई दीखती है। बीज १/१६ इंच लंबे होते हैं। (धन्य० वनौषधि विशेषांक भाग ६ पृ० २५२.२५३) .... संघट्ट संघट्ट (सङ्घट्टा) लता, कैवर्त्तिका, प० १/४०/३ (वैद्यक शब्द सिन्धुपृ० १०६२) सङ्घट्टा | स्त्री । लतायाम् लता के पर्यायवाची नाम कैवर्त्तिका सुरङ्गा च लता वल्ली द्रुमारुहा । रिङ्गिणी वस्त्ररङ्गा च, भगा चेत्यष्टधाभिधा । 1995 // कैवर्त्तिका, सुरङ्गा च लता, वल्ली, द्रुमारुहा, रिङ्गिणी, वस्त्ररंगा तथा भगा ये सब कैवर्त्तिका के आठ नाम हैं। ( राज० नि० ३ / ११६ पृ० ५४) कैवर्त्तिका - स्त्री० मालवे प्रसिद्ध लताविशेष (शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ० ४४ ) संघाड संघाड (शृंगाट) सिंघोडा शृंगाट | पुं । जलकण्टक ।। सिंघाडे ( शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ० १८६) शृङ्गाट के पर्यायवाची नाम जलसूचिः, सङ्घाटिका, वारिकण्टकः, शुक्लदुग्धः, वारिकुब्जकः क्षीरशुक्लः, जलकण्टकः, शृङ्गकन्दः, शृङ्गमूलः, शृङ्गरुहः प० १/४८/६२ शृङ्गाटः, शृङ्गाटकः, जलवल्ली, जलाशयः, विषाणी । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १०६५) अन्य भाषाओं में नाम हि० - सिंघाडा, सिंहाडा । बं० - पानीफल, सिंगाडे । म० -- शिंघाडे, शेंगाडा । गु० - शींघोडा। क० - सिंगाडे । ते० - परिकिगडु | अं० - Water Caltropas (वाटर कॅलट्रॉप्स) Water Chestnut (वाटर चेष्टनट) ले० - Trapa bispinosa Roxb (टॅपावाइस्पाइनोसा) Fam. Onagraceae (ओनेग्रेसी) । उत्पत्ति स्थान- प्रसिद्ध पानीयफल अनेक प्रान्तों Jain Education International जैन आगम वनस्पति कोश के बड़े छोटे ताल-तलैयों में उत्पन्न होता है। 263. Trapa bispinosa Roxb. ( পানিফण) विवरण- इसका जलीय क्षुप जलकुंभी के समान पानी के ऊपर फैला रहता है। पत्ते जलकुंभी के समान होते हैं परन्तु वे त्रिकोणाकार होते हैं। फूल सफेद आते हैं, जो शाम को फूलते हैं। फल त्रिधारे होते हैं और उनके ऊपर-ऊपर कांटे होते हैं, जो देखने में बैल के सिर की तरह दिखलाई देते हैं । छिलका मोटा होता है और गुदी सफेद होती है। फल को उबाल कर या कच्चा ही छिलका निकालकर आहार के रूप में खाया जाता है। काश्मीर में एक बिना कांटे की जाति पाई जाती है । (भाव०नि० आम्रादि फलवर्ग० पृ० ५७८, ५७६) DOOD सज्जा सज्जा (सर्ज) बडा शालवृक्ष भ० २३/४ सर्ज । पुं । शालवृक्ष । सर्जरस । पीतसाल । (शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ० १६३) सर्ज के पर्यायवाची नाम सर्वे कायजकर्णश्च, कषायी चिरपत्रकः । सस्यसंवरणः शूरः, सर्वोऽन्यः शाल उच्यते । ।६०६ ।। सर्ज, कार्श्य, अजकर्ण, कषायी, चिरपत्रक, सस्यसंवरण, शूर, शाल ये सब सर्ज (साल) के पर्यायवाची हैं । (सोढल० नि० प्रथमोभागः श्लोक ६०६ पृ० ६७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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