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है कि स्वातिनक्षत्र की जल की बूंदे जिस मादा जाति के वांस के भीतर प्रविष्ट हो जाती है उसमें वंशलोचन निर्माण हो जाता है। अभी भी भारत के उत्तर पूर्व के तथा दक्षिण भारत के पहाड़ी अरण्यप्रदेशों में इस प्रकार के वंशलोचनोत्पादक निम्न जातियां पाई जाती हैं
(f) Bambusa Arundinacea Retz (Dym) () Arundo Bambos linn (Roxb)
(,, ) Bambusa Bambas Druce (Chopra)
ये तीन जातियां दक्षिण भारत में प्रचुर एवं आसाम व बंगाल में साधारण सहजोद्भव हैं किन्तु गंगा के मैदान से लेकर सिंधु तक सहजोद्भव नहीं है। बंगाल की ओर इसी की एक जाति विशेष Babusa Beceifera (Roxb) है जिसमें कांटे नहीं होते ।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ५ पृ०५६,६०)
वखीर
वखीर (तवक्षीर) तीखुर
भ०२१/१६
विमर्श - प्रज्ञापना १/४२ / २ में वेयखीर शब्द तृण वर्ग के अन्तर्गत है । भगवती २१/१६ में उन शब्दों के स्थान पर वखीर शब्द है। इस वनस्पति का चित्र नहीं मिलता जिससे इसकी पहचान की जा सके। तवक्षीर के पर्यायवाची नाम
तवक्षीरं पयः क्षीरं, यवजं गवयोद्भवम् ।
अन्यद् गोधूमजं चान्यत्, पिष्टिका तण्डुलोद्भवम् ।। अन्यच्च तालसम्भूतं, तालक्षीररादि नामकम् । । तवक्षीर, पयःक्षीर, यवज, गवयोद्भव, गोधूमज, पिष्टिका, तण्डुलोद्भव, तालसम्भूत, तालक्षीर ये तवाक्षीर के संस्कृत नाम हैं।
अन्य भाषाओं में नाम-
हि० - तवखीर । ब० - तवक्षीर । म० - तवकील । गु० - तवक्खार । क०-तवक्षीर । फा० - तवाशीर । अं० - Arrotwrot (अरारोट) । ले० - Curcumaangustifolia | ( शा०नि० हरीतक्यादि वर्ग पृ० १२० ) उत्पत्ति स्थान- वास्तविक तीखुर प्रथम पौधे म० अरुण्डिनेसिया से प्राप्त होता है। यह पौधा यद्यपि उष्णकटिबंधीय अमेरिका का आदिवासी है । तथापि उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, बंगाल, आसाम तथा केरल में
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होता है।
कन्द
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जैन आगम वनस्पति कोश
मूल्
फल
पत्र
विवरण- इसका पौधा सीधा, पतला, ६ से १.८ मीटर ऊंचा; पत्ते बड़े, अंडाकर भालाकार, पुष्प श्वेत गुच्छों में, एवं राइजोम (कंद) बड़े, मांसल, बेलनाकार अभिलट्वाकार होते हैं। नील या पीत कंद के भेद से इसके दो प्रकार पाये जाते हैं, जिसमें नीले कंद से अधिक तीर निकलता है। इसके अन्य भेद भी पाये जाते हैं। इन्हीं कंदों को कूटकर स्टार्च निकालते हैं। शुष्क अवस्था में इसमें न तो कोई गंध रहती है न स्वाद, किन्तु आर्द्र करने पर या पकाने पर इसमें हलकी गंध आती है। इसके कण ३० से ५० माइक्रोन बड़े एवं अंडाकार या दीर्घवृत्ताकार होते हैं।
(भाव०नि० परिशिष्ट पृ० ८२५)
वग्घ
वग्घ (व्याघ्र ) लाल एरण्ड व्याघ्रः पुं । करञ्जवृक्षे । रक्तैरण्डे । व्याघ्रतरुः । पुं । रक्तैरण्डे । (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०१०१०) विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में भुवनपति आदि देवताओं चैत्यवृक्ष बतलाए गए हैं, उनमें एक शब्द वग्घ (व्याघ्र )
ठा०१०/८२/१
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