Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 270
________________ 250 गु० - लवींग | क० - लवंग कलिका, रूंग । ते० - करवप्पु लवंगमु । ता० - किरांबु । मा० - लोंग । फा० - मेखक । अ० - करनफल, करन् फूल । अंo - Cloves (क्लोवस्) । ले०-Caryophyllus aromaticus linn (कॅरियोफालस् एरोमॅटिकस् लिन०) Eugenia aromatica Kuntze (यूजेनिया एरोमॅटिका कुंझे) Fam. Myrtaceae (मिर्टेसी)। लौंग. उत्पत्ति स्थान- इसका वृक्ष मोलुक्काद्वीप में नैसर्गिक रूप से उत्पन्न होता है। झंजिबार तथा पेम्बा में इसकी बहुत खेती की जाती है तथा करीब ८० प्रतिशत लौंग की पूर्ति वहीं से होती है। पेनांग, मेडागास्कर, मॉरिशस् एवं सीलोन आदि स्थानों में भी इसकी खेती की जाती है। भारतवर्ष में दक्षिण भारत 'अल्पमात्रा में इसकी खेती का प्रयत्न किया गया है। विवरण- इसके वृक्ष प्रायः १२ से १३ हाथ ऊंचे और सतेज होते हैं। देखने में बहुत सुहावने लगते हैं। इसकी लकड़ी कठोर होती है तथा इस पर धूसर वर्ण की चिकनी छाल होती है । पत्ते अभिमुख, सवृन्त, ४ इंच लम्बे, २ इंच चौड़े, लट्वाकर - आयताकार । फलक मूल एवं अग्र दोनों पतले एवं लम्बे । पत्रतट अखण्ड किन्तु लहरदार एवं मध्यनाडी के दोनों तरफ अनेक समानान्तर नाडियां होती हैं। पत्ते चमकीले हरे रंग के होते हैं तथा मसलने से इनमें सुगंध आती है। पुष्प हलके नीलारुण रंग के ६ मि.मी. लम्बे तथा अत्यन्त तीव्र आह्लादकारक सुगंध Jain Education International जैन आगम वनस्पति कोश होते हैं। इस वृक्ष की सुखी हुई पुष्प कलिकाओं को लौंग कहा जाता है। ये पहले हरी होती हैं। बाद में जब इनका रंग किरमिज हो जाता है तब इन्हें वृक्षों से तोड़कर सुखा लिया जाता है। इसी समय इनमें तैल की मात्रा अधिकतम रहती है। लौंग १० से १७.५ मि.मी. लम्बी तथा रक्ताभ बादामी रंग की होती है। इसके नीचे का भाग जो हाइपॅन्थियम से बना होता है वह चौकोर तथा कुछ चपटा होता है तथा नख से दबाने पर उसमें से तेल निकलता है। इसके अग्रभाग में दो कोष रहते हैं जिनके अंदर अक्षलग्न जरायु से लगे हुए अनेक बीजीभव होते हैं। लौंग के ऊपर के भाग में मोटे, नोकीले तथा फैले हुए ४ बाह्यदल होते हैं । जिनके बीच में गुम्बजाकृति हल्के रंग के, न फैले हुए, पतले तथा अनियतारूढ़ ४ अन्तर्दल होते हैं । अन्तर्दलों के अंदर अनेक अंदर की तरफ मुड़े हुए पुंकेशर होते हैं तथा कड़ा होता है। लौंग में अत्यन्त तीव्र मसालेदार गंध होती है तथा इसका स्वाद कटु होता है। (भाव० नि० कर्पूरादि वर्ग० पृ०२१६) DOOD लवंगपुड लवंगपुड (लवंगपुट) लवंग रा० ३० विमर्श - गंधकी उपमा के लिए लवंगपुड शब्द का प्रयोग हुआ है। लवंगरुक्ख लवंगरुक्ख (लवङ्गरूक्ष) लवंग का वृक्ष भ० २२/१ प० १/४३/२ विवरण - यह कर्पूरादि वर्ग और जम्बावादि कुल का ३० से ४० फीट ऊंचा सदा बहार वृक्ष होता है। इसकी बहुसंख्यक नर्म और अवनत शाखायें चारों ओर विस्तृतरूप से फैली हुई होती हैं। छाल फीकी पीताभ धूसरवर्ण और मसृण । शाखाओं के दोनों ओर बहुत संख्या में हरे रंग के ३ से ४ इंच लम्बाई के पत्र आमने सामने क्वचित् ही अन्तर पर अखण्ड बीच में चौड़े दोनों सिर पर नोंक वाले होते हैं। देखें लवंग शब्द । विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में लवंग रुक्ख शब्द वलय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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