Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 268
________________ 248 जैन आगम : वनस्पति कोश रेणुया रौहिषक के पर्यायवाची नाम अन्यद्रौहिषकं दीर्घदृढकाण्डो दृढच्छदम् ।। रेणुया (रेणुका) संभालु के बीज प०१/४८/५। यज्ञेष्टं दीर्घनालश्च, तिक्तसारश्च कुत्सितम्।। रेणुका के पर्यायवाची नाम दीर्घ रौहिषक,दृढकाण्ड,दृढच्छद, यज्ञेष्ट, दीर्घनाल, रेणुका राजपुत्री च, नन्दिनी कपिला द्विजा।।। तिक्तसार, कुत्सित ये दीर्घरौहिष के पर्यायवाची नाम हैं। भस्मगंधा पाण्डुपुत्री, स्मृता कौन्ती हरेणुका ।।१०४ ।। (शा०नि० गृडूच्यादिवर्ग० पृ०२७६) रेणुका, राजपुत्री, नन्दिनी, कपिला, द्विजा, अन्य भाषाओं में नामभस्मगंधा, पाण्डुपुत्री, कौन्ती, हरेणुका ये सब रेणुका के हि-रोहिस, रूसाघास, रतहर, मिरचागंध । पर्यायवाची शब्द हैं। (भाव०नि० कर्पूरादिवर्ग० २५२) बं०-अगमघास। म०-रोहिषगवत। क०-डुल्लु । अन्य भाषाओं में नाम फा०-खवालमागून, खलालमामून, खबालमामून ।। हि०-रेणुका, रेणुक, संभालू के बीज । गु०-हरेणु। गु०-रोंडसो। अंo-Rasha grass (रोषाग्रास)। ले०म०-रेणुक बीज । इरा०-पंजन गुस्त । अ०-अथलक् । Cymbopogon Schoenanthus (साइम्बोपोगोन स्कीनैनथस ले०-VitexagnusCastusLinn. (वाइटेक्स एग्नस् कास्टस् लिन०) Fam, gramineae (ग्रेमिनी)। लिन०) Fam. Verbenaceae (हर्बिनॅसी)। उत्पत्ति स्थान-यह बलूचिस्तान, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, भूमध्यसागरीय प्रदेश आदि प्रदेशों में होता है। देहरादून के वैज्ञानिक बाग' में यह लगाया हुआ है। विवरण-इसका गुल्म या वृक्ष होता है जिसकी शाखाएं चौपहल होती है। पत्ते लंबे पत्रनाल से युक्त, करतलाकार संयुक्त, पत्रक पांच कभी-कभी सात भी, भालाकार और लंबे नोक वाले होते हैं। फल साधारण मटर के बराबर, अण्डाकृति तथा धूसरवर्ण के होते हैं। बाह्यदल एवं वृन्त इसमें लगा रहता है। ये फल बहुत कड़े रहते हैं तथा काटने पर इसके अंदर ४ खंण्ड दिखलाई देते हैं, जिनमें एक-एक छोटा चिपटा बीज रहता है। भारतीय निर्गुण्डी के फल से ये फल करीब आधे छोटे होते हैं। (भाव०नि० कर्पूरादि वर्ग० पृ० २५२) M रोहियंस रोहियंस (रौहिषक) दीर्घ रौहिष तृणप० १/४२/१ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में रोहियंस शब्द तृणवर्ग के अन्तर्गत है। वनौषधिशास्त्रों में तृण के नामों में रौहिष और रौहिषक ये दो शब्द मिलते हैं। रोहियंस शब्द में स और य वर्ण का व्यत्यय होने से रौहिषक शब्द बन सकता है। इसलिए यहां संस्कृत का रौहिषक शब्द ग्रहण किया जा रहा है। उत्पत्ति स्थान-यह मध्यभारत, दक्षिण और पश्चिमोत्तर प्रान्त तथा पंजाब में अधिक पाई जाती है। यह वन उपवनों में आप ही आप उत्पन्न होती है और वाटिकाओं में भी रोपण की जाती है। विवरण-यह ५ से ६ फीट ऊंची एक सुगंधित घास है। इसकी जड़ बारहों मास जीवित रहती है। काण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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