Book Title: Jain Agam Vanaspati kosha
Author(s): Shreechandmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 266
________________ 246 (कैयदेव०नि० ओषधिवर्ग० पृ०१७४ ) अन्य भाषाओं में नामहि० - अमलतास, सोनाहली । बं०- सोन्दाली, सोनालु, बन्दरलाठी । म०- बाहवा । क० - कक्केमर । ते ० - रेलचट्टु | गु० - गरमालो । पं० - अमलतास, करंगल, कनियार । ता० - कोन्नेमरं, शरकोन्ने, कोरैकाय । फा० - ख्यारेचम्बर । अ०- ख्यारेशम्बर, ख्यारशम्बर । अo - Pudding Pipe tree (पुडिंग पाइप ट्री) Indian Laburnum (इण्डियन लॅबर्नम् ) Puring Cassia (पर्जिंग केसिया) । ले० - Cassia Fistula Linn (केशिया फिस्चुला लिन० ) Fam. Leguminosae (लेग्युमिनोसी) । उत्पत्ति स्थान - यह प्रायः सब प्रान्तों में पाया जाता है । विवरण - इसका वृक्ष मध्यमाकार का होता है, किन्तु कहीं-कहीं बड़े वृक्ष भी देखने में आते हैं । लकड़ी बहुत मजबूत होती है । १२ से १८ इंच तक की लंबी, सीकों पर ४ से ५ जोड़े पत्ते लगते हैं। जो १.५ से ३.५ इंच लंबे, अंडाकार होते हैं । १० से २० इंच तक की लंबी टहनियों पर सुनहले चमकीले, पीले-पीले रंग के पांच-पांच दलवाले फूलों के घनहरे लगते हैं, जो चैत के अंत से ज्येष्ठ तक वृक्षों को सुशोभित करते हैं। जेठ में पतली-पतली सलाई के समान हरी-हरी फलियां निकलकर वर्षा के अंत तक 1 से 2 फीट लंबी, 1 इंच तक मोटी हरी-हरी फलियां लटकती दिखाई पड़ती हैं। फिर हेमन्त के अन्त से काला रूप धारण करके वसंत में पक जाती हैं। फलियों के भीतर पुरानी चवन्नी बराबर गोल-गोल पतले-पतले काले रस से लिपटे हुए परत रहते हैं। परतों के बीच सिरस के बीज के समान बीज होते हैं। (भाव०नि० हरीतक्यादि वर्ग पृ० ६८, ६६ ) **** Jain Education International रायवल्ली रायवल्ली (राजवल्ली) करेली राजवल्ली - स्त्री० करेला । भ० २३/६ प० १/४८/४ जैन आगम वनस्पति कोश (शालिग्रामौषधशब्द सागर पृ०१५२ ) अन्य भाषाओं में नाम हि० - करेली, छोटा करेला । बं०-छोटा करला, छोटे उच्छें । म० - कार्ली, क्षुद्रकारली, लघुकारली । गु० - करेटी, कारेलां, कडवाबेला । अ० - Bitter gourd (बिटर गोर्ड) Hairy Mordica ( हेअरी मोर्डिका) । ले०-Monordica Muricata (मोमोर्डिका मुरिकेटा) । उत्पत्ति स्थान - प्रायः सब प्रान्तों में इसे रोपण करते हैं । विवरण- बड़े और छोटे के भेद से यह (करेला ) दो प्रकार का होता है। लेटिन नाम मेमोर्टिका चेरटिया बड़े का है। इसे करेला (कारवेल्लक) कहते हैं। छोटे का लेटिन नाम मेमोर्डिका मुरिकेटा है। इसे करेली (कारवेल्ली) कहते हैं। इन दोनों के केवल आकार प्रकार में ही अंतर है। करेली १ से ३ इंच या इससे छोटी क्षुद्र अण्डाकार होती है तथा इसकी बेल भी उतनी ही लम्बी नहीं होती । रंग में करेला या करेली हरी ही होती है, किन्तु करेला कहीं श्वेत रंग का भी होता है । करेली की लता वर्षायु, पत्र अनेक असमान भागों में विभक्त, गोलाकार, रोमश तथा लगभग १ से ३ इंच व्यास के होते हैं। पुष्प पीतवर्ण एकलिंगी तथा फल मध्य भाग में मोटे तथा दोनों ओर छोर पर क्रमशः नुकीले पृष्ठ भाग पर त्रिकोणकार उभारयुक्त होते हैं। पकने पर पीले पड़ जाते हैं तथा गूदा और बीज लाल हो जाते हैं। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ०१६०) For Private & Personal Use Only .... रालग लग (रालक) कंगूधान्य का भेद । कंगुगहणेणं उड्डकंगुए कंगुभेदा सो राओ । भ० २१/१६ प० १/४५/२ गहणं, जे पुण अवसेसा (दशवै० अग० चू० पृ० १४० ) कंगु शब्द से ऊर्ध्व (सर्वोत्तम) कंगु लेना चाहिए । कंग के शेष भेद रालक कहलाते हैं। विवरण - काली, लाल, सफेद तथा पीली इन भेदों से कंगुनी ४ प्रकार की होती है। इनमें से पीली कंगुनी ही सर्वोत्तम होती है । (भाव०नि० धान्यवर्ग० पृ० ६५६) www.jainelibrary.org

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