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जैन आगम : वनस्पति कोश
निर्दिष्टा काष्ठरजनी, सा च कालेयकं स्मृतम्।। के साथ कर्णीवाले शब्द तथा अश्ववाचक सभी शब्दों के कालीयकं दारुनिशा, दर्वी पीताह पीतकम् ।।५८ ।। साथ भुरी वाले शब्द अश्वखुरा (अपराजिता) के नाम हैं। कंटकंटेरी पर्जन्या, पीतदारु पचंपचा।
(राज०नि०३/८७.८८ पृ० ४५) हेमवर्णवती पीता, हेमकान्ता कुसम्भका ।।५।। अन्य भाषाओं में नाम
दारुहरिद्रा, पीतद्रु, पीतचंदन, काष्ठरञ्जनी, हि०-कोयल, अपराजिता । म०-कोकर्णिसुपली। कालेयक, कालीयक, दारुनिशा, दर्वी, पीतांह, पीतक, गु०-गरणी, घोली। बं0-अपराजिता अं0-Megin कंटकटेरी, पर्जन्या, पीतदारु, पचंपचा, हेमवर्णवती, (मेगिन)। ले०-Clitoria Termatia (क्लिटोरिया टरनेशिया)। पीता, हेमकान्ता कुसुम्भ का ये सभी दारुहरिद्रा के पर्याय विवरण-गुडूच्यादि वर्ग की लता रूप में यह एक
(धन्व०नि० १/५६ से ५६ पृ० ३३) ऐसी वनौषधि है जो अपने प्रयोग में प्रायः अपराजिता या देखें दव्वहलिया शब्द।
सफल ही होती है अथवा जिसके प्रयोग से वैद्य पराजित
नहीं होता इसीलिए मालूम होता है संस्कृत में इसे दहफुल्लइ
अपराजिता कहते हैं।
श्वेत और नीले फूलों के भेद से यह दो प्रकार की दहफुल्लइ (दधिपुष्पी) श्वेत अपरजिता।
है। इसके फूल ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर प्रायः वर्षभर प० १/४०/५
फलते रहते हैं। इसकी बेलें बाग-उपवन ग्रामों में खेती दधिपुष्पिका (पी) स्त्री। कटभीवृक्षे। श्वेत
की मेड़ों पर वृक्ष या झाड़ियों के सहारे खूब फैलती हुई अपराजितायाम्। (वैद्यक शब्दसिन्धु पृ०५२६)
होती हैं। कई लोग अपने घर के दरवाजे या फाटकों विमर्श-प्राकृत भाषा में फुल्ल शब्द का अर्थ पुष्प
पर शोभा के लिए इसे चढ़ा देते हैं। फूल सीप जैसे या या फूल होता है। प्राकृत में एक पद में भी संधि होती
गौ के कान जैसे आगे को कुछ गोलाकार फैले हुए और है इसलिए इसकी छाया पुष्पी बनी है। प्रस्तुत प्रकरण
डंडी की ओर सिकडे हए से होते हैं। इसीलिए इसे में दहफुल्लइ शब्द वल्लीवर्ग के अन्तर्गत है। इसलिए
गोकर्णी भी कहते हैं। इसका अर्थ मोरबेल उपयुक्त है। देखें दधिफोल्लइ शब्द ।
अपराजिता के पत्ते अंडाकार, वनमंग के पत्ते जैसे यदि एक पद में संधि न करें तो दहफुल्लइ की छाया
किन्तु उनसे कुछ बड़े आकार के, प्रत्येक सीक पर ५ दधिपुष्पकी बनती है। वनस्पति शास्त्रों में दधिपुष्पकी
से ७ तक युग्म या जोड़ से निकलते हैं। फलियां मटर शब्द नहीं मिलता है, दधिपुष्पिका मिलता है।
की फली जैसी किन्तु चपटी २ से ४ इंच लंबी होती है। दधिपुष्पिका का अर्थ श्वेतअपराजिता होता है। यह
बीच ५ से ७ या १० तक काले वर्ण के चिकने उड़द जैसे लता होती है। इसलिए इस शब्द का दूसरा अर्थ श्वेत
कुछ चपटे प्रत्येक फली में होते हैं। अपराजिता भी ग्रहण कर रहे हैं।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १ पृ० १६७, १६८) दहफुल्लइ (दधिपुष्पिका) श्वेत अपराजिता । दधिपुष्पिका के पर्यायवाची नाम
दहिवण्ण अश्वक्षुराद्रिकर्णी च कटभी दधिपुष्पिका।। दधिवण्ण (दधिवर्ण) कैथ गर्दभी सितपुष्पी च श्वेतस्यन्दापराजिता ।।७// ठा० १०/८२/१ भ० २२/३ समवाय १५/ ओ० ६, १०, जीवा० श्वेता भद्रा सुपुष्पी च, विषहन्त्री त्रिरेकधा।
३/३८८ प० १/३६/३ नाग पर्यायकर्णी स्यादश्वाहादिक्षुरी स्मृता ।।८८ // अश्वखुरा, अद्रिकर्णी, कटभी, दधिपुष्पिका, गर्दभी,
विमर्श-वनस्पति शास्त्र में दधिवर्ण शब्द नहीं सितपुष्पी, श्वेतस्यन्दा, अपराजिता. श्वेता भदा सपष्पी मिला है। लगता है दधि के समान वर्ण के आधार पर विषहन्त्री ये सब तेरह नाम हैं। नागवाचक सभी शब्दों
दधिवर्ण शब्द बना हो। कैथ के पर्यायवाची नामों में एक
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