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जैन आगम : वनस्पति कोश
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उत्पत्ति स्थान-यह इस देश के प्रायः सूखे प्रान्तों ले०-Scirpus Kysoor Roxb (स्किर्पस् कायसुर) Fam. में अधिक उत्पन्न होता है तथा दक्षिण में वन्य अवस्थाओं Cyperaceae (साइपेरेसी)। में पाया जाता है।
विवरण-इसका वृक्ष बहुत बड़ा होता है और उस पर सीधे कांटे होते हैं। वृक्ष से बबूर के गोंद के समान B Y पुष्प एवं बीज। एक प्रकार का गोंद निकलता है। पत्ते संयक्त सदलपर्ण ३ से ४ इंच लंबे होते हैं। पत्रक अंडाकार या अभिअंडाकार छोटे-छोटे एक-एक सींक पर तीन-तीन अथवा ५ या ७-७रहते हैं। फूल फीके लाल रंग के होते हैं। छाल २ से ३ इंच के घेरे में गोल होते हैं और छिलका कठोर होता है। भीतर सगंधित, स्वाद. खाने लायक गदी होती हैं, और गूदी में छोटे-छोटे अनेक चिपटे बीज होते हैं। इसमें एक आश्चर्यजनक गुण यह है कि यदि हाथी कैंत के फल को खा जावे तो इसका गदा हाथी के पेट में रह जाता है और गूदा रहित अखण्डित फल मल के साथ बाहर निकल आता है। इसके दो भेद होते हैं। एक में फल छोटे तथा अम्ल होते हैं। दूसरे में फल बड़े तथा मीठे होते हैं। पक्व फल को चीनी के साथ या शरबत बनाकर या चटनी के रूप में खाया जाता है। इसकी जेली भी बनाई जाती है। इसके पत्र, गोंद तथा फल का
उत्पत्ति स्थान-यह सभी प्रान्तों में होता है, इसके उपयोग किया जाता है।
(भाव०नि० पृ० ५६६) पौधे तालाबों में प्रायः एक फट या अधिक गहरे पानी में
होते हैं। कसेरुया
विवरण-काण्ड ४ से ६ फीट ऊंचा तथा ३ पहल कसेरुया (कसेरुका) कसेरू प० १/४६ का होता है। पत्ते एक इंच चौड़े तथा कांड के बराबर
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कसेरुया शब्द या कुछ कम लंबे होते हैं। पुष्पमंजरी करीब-करीब ३ फीट जलरुहवर्ग के अन्तर्गत है। कसेरू तालाबों में होता है। लंबी होती है। फल छोटे धूसर या कृष्णवर्ण के होते हैं। कसेरुका के पर्यायवाची नाम
कन्द ऊपर से काले रंग के, अंदर से श्वेत, जायफल गुण्डकंदः कसेरु:, क्षुद्रमुस्ता कसेरुका।
जितने बड़े एवं कुछ गोलाई लिये होते हैं। इनका स्वाद शूकरेष्टः सुगन्धिश्च, मुकन्दो गन्धकन्दकः ।।१४५।। कुछ मधुर एवं सुगंधित होता है। गुण्डकंद, कसेरु, क्षुद्रमुस्ता, कसेरुका, शूकरेष्ट,
(भाव०नि० शाकवर्ग पृ० ७०१, ७०२) सुगन्धि, मुकन्द, गन्धकन्दक ये सब कसेरू के नाम हैं। (राज०नि०८/१४५ पृ० २६०)
काउंबरि अन्य भाषाओं में नाम
काउंबरि (काकोदुम्बरिका) कठूमर प० १/३६/२ हि०-कसेरू। बं०-केशुर। म०-कचरा,
विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में काउंबरि शब्द बहु फुरड्या। क०-सेकिनगड्डे। ते०-इट्टिकोति। बीजक वर्ग के अन्तर्गत है। अंजीर की तरह इसमें बहत
बीज होते हैं।
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