________________
जैन आगम वनस्पति कोश
तिलियाकोरा
कोविदः । पुं । तिलक वृक्षे ।
(वैद्यक निघंटु ) (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० ३२५) विमर्श - कोविद शब्द के पर्यायवाची नाम वैद्यक निघंटु में है। वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। इसलिए तिलक के पर्यायवाची नाम दिए जा रहे हैं। हिन्दी में इसे तिलिया कहते हैं । तिलियाकोरा लता होती है। तिलक के पर्यायवाची नाम
तिलकः क्षुरकः श्रीमान्, पुरुष श्छिन्नपुष्पकः । तिलक, क्षुरक, श्रीमान्, पुरुष और छिन्न पुष्पक ये सब तिलक के पर्यायवाची नाम है ।
(भाव०नि० पुष्पवर्ग० पृ० ५०५)
अन्य भाषाओं में नाम
हि० - तिलक तिलिया, तिलका संथाल - हुण्ड्र । ले० - Wendlandia exerta D. C. (वेण्डलैण्डिया एक जर्टा ) Fam. rubiaceae (रुबिएसी)
उत्पत्ति स्थान - तिलियाकोरा लता बंगदेश, पूर्व बंगाल से लेकर उड़ीसा तक तथा कोंकण सिंगापुर, जावा, कोचीन, चायना आदि में विशेषतः पाई जाती है।
प० १/४०/३
विवरण- गुडूची कुल की इस पराश्रयी विस्तृत पत्राच्छादित, धूसरवर्ण की लताविशेष के पत्र कोमल रोम, २ से ६ इंच लम्बे, १ से २ इंच चौड़े, डिम्बाकृति या गोल, अग्रभाग में क्रमशः पतले नोकदार । पुष्प लगभग १ से २ इंच लम्बे, ६ पंखुड़ीयुक्त, त्रिकोणाकार, मूल १ इंच लम्बा होता है। फल १ से २ इंच लम्बा पकने पर लालरंग का होता है ।
( धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग ३ पृ० ३५४ )
कुस
कुस ( कुश) कुसघास, कुशा
भ० २१/१६ प० १/४२/१
कुशोदर्भस्तथा बर्हिः, सूच्यग्रो यज्ञभूषणः ।।१६५ ।। कुश, दर्भ, बर्हि, सूच्यग्र, यज्ञभूषण ये सब कुशा (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ३८२ )
के नाम हैं।
Jain Education International
अन्य भाषाओं में नाम
हि० - कुशा, दाभ, कुसघास । म० - दर्न । बं०कुश | पं० - दभ, द्रभ । गु० - दाभडो, दरभ। क०वीलीय बुट्टशशी । ते० - कुश, दर्बालु । ता०-दर्भ | ले०-Eragrostis cynosuroides Beauv (इरेग्रॉस्टिस् साइनोसुरोइडीस् बी०) Syn. Desmostachya bipinnata Stapf (डिस्मोस्टेचिआ वाइपिन्नाटास्टा०) Fam, gramineae (ग्रामिनी) ।
शा
For Private & Personal Use Only
85
Beaur
बीज
पुष्प
उत्पत्ति स्थान- यह खुले हुए घास के मैदानों में सर्वत्र पाया जाता है।
विवरण- इसके पौधे मोटे बहुवर्षायु दृढ़ तथा १ से ३ फीट ऊंचे होते हैं। मूल स्तंभ सीधा खड़ा परन्तु बहुत गहराई तक होता है । पत्ते १८ इंच तक लम्बे . २ इंच चौड़े, अग्र पर कांटे की तरह तीक्ष्ण और पत्रतट सूक्ष्म रोमों के कारण तेज धार का होता है। पुष्पदंड ६ से १८ इंच लम्बा तथा सीधा होता है। बीज १/४ इंच लम्बे अंडाकार तथा चपटे होते हैं। वर्षा ऋतु में पुष्प तथा शीतऋतु में फल लगते हैं।
(भाव०नि० गुडूच्यादिवर्ग पृ० ३८२ )
www.jainelibrary.org