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जैन आगम : वनस्पति कोश
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पाया जाता है।
वाला दुपहरिया
रा० २५ प० १७/१२३ असितसितपीतलोहितपुष्षविशेषाच्चतुर्विधो बन्धूकः ।।
यह (बन्धूक) कृष्ण, श्वेत, पीत तथा लोहित वर्ण पुष्प विशेष से चार प्रकार का होता है।
(राज० नि० व० १० ११८ पृ० ३२०) विवरण-इसके फूल प्रायः दुपहर के समय में ही खिलने तथा सायंकाल में मुझी जाने के कारण इसे गुल दुपहरी कहते हैं। पुष्प वर्षाकाल में अधिक आते हैं। वैसे तो प्रायः सब काल में ये फूल आते हैं।
किसी-किसी पौधे में श्वेत फीके पीले और सिन्दूरी रंग के भी पुष्प आते हैं।
(धन्वन्तरि व नौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ४१८) वाराहीकंद.
_ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में काले रंग की उपमा के लिए 'किण्ह बंधुजीवग' शब्द प्रयुक्त हुआ है। संस्कृत में
बन्धूक और बन्धुजीव पर्यायवाची नाम हैं। हिन्दी में इसे विवरण-इसकी लता आरोही तथा वामावर्त होती द
दुपहरिया और पंजाबी में गुलदुपहरिया कहते हैं। है। कांड चिकने तथा पत्रकोणों में लगभग १ इंच व्यास की कन्द सदृश रचनाएं होती हैं । पत्ते साधारण एकान्तर
किण्हासोय २.५से ६ इंच लम्बे। १.७५ से ४ इंच चौड़े, पतले, पुच्छाकार, लंबे नोकवाले तथा आधार पर तांबूलाकार किण्हासोय (कृष्णाशोक) काला अशोक होते हैं। इनके आधारीय खंड गोल और पत्राधार पर ६
रा० २५ प० १७/१२३ शिराएं होती हैं। नरपुष्पों की मंजरियां नीचे की ओर देखें कण्हासोय शब्द । लटकी हुई २ से ४ इंच लंबी और प्रायः पत्रकोणों में समूहबद्ध होकर निकली हुई रहती है। नारी पुष्पों की
किमिरासि मंजरियां ४ से १० इंच लम्बी होती हैं। फल ३ पंखवाले और बीज भी आधार पर सपंख होते हैं। कंद छोटे आकार
किमिरासि (कृमिराशि) माजूफल, मायाफल । का भूरे रंग का होता है जिस पर सुअर की तरह रोम
भ० २३/८ प०१/४८/६ होते हैं। यह भीतर से पीताभ श्वेत होता है।
कृमिकोष, पु०-न० फलविशेष । माजूफल
(शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ० ४१) (भाव० नि० गुडूच्यादि वर्ग पृ० ३८७)
विमर्श-कृमिराशि और कृमिकोष दोनों शब्द अर्थ
की दृष्टि से समान हैं। माजूफल में कीड़े घुस जाते हैं किट्ठीया
इसलिए कृमिराशि माजूफल होना चाहिए। किट्ठीया (गृष्टिका) वाराहीकंद प० १४८।२ मायाफल (माजूफल) के पर्यायवाची नामदेखें किट्ठिया शब्द।
मायाफलं, मायिफलच मायिका, छिद्राफलं मायि च पञ्चनामकम
मायाफल, मायिफल, मायिका, छिद्राफल तथा किण्ह बंधुजीवग
मायि ये सब मायाफल के पांच नाम हैं। किण्ह बंधुजीवग (कृष्ण बंधुजीवक) कृष्ण पुष्प
(राज०नि०६/२५६ पृ० १८७)
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