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अन्य भाषाओं में नाम
ब०
हि० - कूडा, कोरयां, कुड़ा, कौरैयां, कुरैयां । ० - कुरचि । म० - पांढरा कुडा । गु० - कडो क०कोरासिमिन । ते० - काककोडिसे, पलाकोडसा । उडि०कुड़िया । ता० - वेप्पालै कोडगपल । मल० - वेनपाला । फा० - जबाने गुजस्खे तल्ख । अ० - लसनुल्लास फिरुलमुर्र, तिबाज । अं०-Kurchi conessi or tellicherry Bark (कुर्चि कोनेसि या तेल्लिचेरि बार्क) । ले०-Holarrhena antidysenterica wall (होलेहवेना एन्टिडिसेन्टेरिका वाल) ।
पता
फूल →
फली के अन्दर
का 'भाग
इन्द्रयव
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जैन आगम वनस्पति कोश
इंच तक मोटी, खुरदरी, भीतर से कुछ लाल हलकी और कडुवी । पत्र लंबगोल, चिकने, ५ से १० इंच लंबे, १.५ से ५ इंच चौड़े, मृदुरोमश, कदंबपत्र सदृश होते हैं। कोमल शाखा का अग्रभाग या पत्राग्र तोड़ने से श्वेतवर्ण का रस निकलता है। पत्ते सूखने पर भी पांडुवर्ण के ही रहते हैं।
पुष्प श्वेत, छोटे, चमेली पुष्प जैसे, पत्रकोण से निकली हुई सलाका पर गुच्छों में, किंचित् गंधयुक्त होते हैं। पुष्पवृन्त छोटा, ४ से ५ पंखुड़ियों युक्त होता है। फलियां सहजने की फल जैसी, ८ से १६ इंच लंबी, १/२ इंच मोटी कुछ टेढी दो-दो एक साथ वृन्त की ओर जड़ी हुई किन्तु अग्रभाग पर पृथक् कुछ श्वेत दागों से युक्त होती है। बीज यव के सदृश होने से इन्हें इन्द्रयव कहते हैं। ये १/२ इंच लंबे, रेखाकार धूसरवर्ण के अन्त के सिरे पर प्रायः हल्के भूरे रंग के, रोम गुच्छ से युक्त तथा स्वाद में अति कडुवे होते हैं । चबाने से जीभ पर संक्षोभ सा प्रतीत होता है। ये बीज कच्ची दशा में हरे पकने पर कुछ लालवर्ण के तथा सूखने पर धूसर या मटमैले एवं भीतर से पीताभ श्वेत होते हैं |
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० २६५, २६६ ) इन्द्रजव तथा इसकी आर्द्र छाल का विशेष व्यवहार किया जाता है। इसी वृक्ष को श्वेत कुटज या पुंकुटज कहा जाता है। (भाव० नि० पृ० ३४७)
कुडा
कुडा (कुटी) कपूरकचरी भ० २१/१७
उत्पत्ति स्थान—इसके क्षुप हिमालय की चोटियों कुटी (स्त्री) मुरानामकगंधद्रव्य। कपूरकचरी,
एकाङ्गी ।
पर एवं उष्णप्रदेशों में बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, आसाम आदि स्थानों में विशेष पाए जाते हैं। कहीं-कहीं ये लगाये भी जाते हैं।
विवरण- दोनों (सित, असित) कुड़ा एक ही कुटज कुल की प्रमुख वनौषधियां संभवतः वे हैं जिन्हें चरकाचार्य जी ने पुंकुटज और स्त्रीकुटज नाम से पुकारा है। अनेक शाखायुक्त क्षुपरूपी वृक्ष दुग्धसदृश, रसयुक्त, ४ से १० फीट ऊंचा, काण्ड की छाल पांडु धूसरवर्ण की, चौथाई
(शालिग्रामौषधशब्दसागर पृ० ३७) विमर्श - प्रस्तुत प्रकरण में कुडा शब्द तृण वनस्पति के साथ है। कपूरकचरी के काण्ड पत्रमय होते हैं। 1 इसलिए यहां कपूरकचरी अर्थ ग्रहण किया गया | भगवतीसूत्र (२२ 1३) में कुटग, शब्द आया है, जो कूडा नामक वृक्ष का अर्थ देता है। इसलिए यहां कुडा शब्द का भिन्न अर्थ कपूरकचरी किया गया है। कुटी का पर्यायवाची नाम
मुरा गन्धवती दैत्या, हृद्या गन्धकुटा कुटी । । १३८६ ॥
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