________________
जैन आगम : वनस्पति कोश
विमर्श - बिहार प्रान्त में कलाय शब्द आज भी खेसारी के लिए प्रचलित है। खेसारी छोटी मटर को कहते हैं।
कलाय के पर्यायवाची नाम
कलायः खण्डिको ज्ञेयः ।
(कैयदेव० नि० धान्यवर्ग पृ० ३१३) कलाय, खण्डिक ये कलाय के पर्यायवाची नाम हैं। अन्य भाषाओं में नाम
हि० - खेसारी, खिंसारी, कसूर, मटरभेद । बं० - खेसारी । म० - लाग । गु० - लांग । फा० - मासंग | अ० - इवुलबकरखलज । 310-Chickling Vetch ( चिकलिंग वेच) । ले० - Lathyrus Sativus Linn (लेथीरिस् सेटीवस)।
उत्पत्ति स्थान - प्रायः सब प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है और उत्तरभारत में अधिक उत्पन्न होती है। विवरण- इसकी शाखाएं पंखदार होती हैं । पत्ते पक्षवत् तथा अग्र २ या ३ सूत्रों में विभाजित रहते हैं । पत्रक पतले १ से २.५ इंच लंबे रेखाकार - भालाकार लम्बाग्र एवं संख्या में २ से ४ रहते हैं। फूल नीलापन युक्त लाल या श्वेत होते हैं। फलियां १ से १.५ इंच लंबी, एक किनारे पर पंखदार तथा ४ से ५ बीजों से युक्त होती हैं। अकाल के समय गरीब इसकी दाल खाते हैं। यह ( खेसारी) सेवन करने से लंगडा तथा पंगुला बना देने वाली और वायु को अत्यन्त कुपित करने वाली होती है। (भाव० नि० धान्यवर्ग० पृ० ६५० ) यह धान्यवर्ग एवं नैसर्गिक क्रमानुसार शिम्बीकुल के अपराजिता उपकुल का एक द्विदल धान्य विशेष है । यह मटर का ही एक छोटा भेद है। इसके पत्तों की कोपलें भी नमक मिर्च मिलाकर ग्रामवासी खाते हैं या पत्तों का साग बनाकर खाते हैं। विन्ध्यप्रदेश की ओर खेसारी को तीऊर, तेवरा कहते हैं ।
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० ३६३)
कल्लाण
कल्लाण (कल्याण) गरजन अश्वकर्ण
Jain Education International
भ० २१/१७ पं० १/४१/२
कल्याणम्। क्ली० । लघुसर्ज्जवृक्षे ।
( वैद्यक शब्द सिंधु पृ० २३१ )
कल्याण के पर्यायवाची नामशाल: सर्जः सर्जरसः, कान्तो मरिचपत्रकः । शक्रद्रू रालनर्यासः, श्रीकरः शीतलस्तथा । 1808 ।। दीपवृक्षः स्निग्धदारुः, कल्याणः कान्तभूरुहः ।
सर्ज, सर्जरस, कान्त, मरिचपत्रक, शक्रद्रु, राल निर्यास, श्रीकर, शीतल, दीपवृक्ष, स्निग्धदारु, कान्तभूरुह और कल्याण ये पर्यायशाल के हैं।
61
.
(कैयदेव निघंटु ओषधिवर्ग पृ० १५० १५१ ) नोट- यद्यपि भाव प्रकाश में अश्वकर्ण, शाल का पर्याय एवं अजकर्ण सर्जक का पर्याय दिया है तथापि ये चार भिन्न वृक्ष सकते हैं। क्योंकि सुश्रुत सालसारादिगण में साल, अजकर्ण एवं अश्वकर्ण नामक ३ वृक्ष तथा चरक में कषाय स्कंध में साल, सर्ज, अश्वकर्ण एवं अजकर्ण नामक ४ वृक्षों का वर्णन मिलता है। इस दृष्टि से अश्वकर्ण यह डिप्टेरोकार्पस अॅलेटस् (Dipterocarpus alatus), हिन्दी में गर्जन अजकर्ण यह टर्मिनेलिया टोमेन्टोझा (Terminalia tomentosa) हिन्दी में असन हो सकता है। (भाव०नि० वटादि वर्ग पृ० ५२० ) विमर्श - शाल का पर्याय नाम अश्वकर्ण भाव प्रकाश में दिया गया है। अश्वकर्ण की हिन्दी में गर्जन नाम से पहचान होती है। प्रस्तुत प्रकरण (प० १ / ४१/२) में यह शब्द पर्वक वर्ग के अन्तर्गत है । गर्जन पर्ववृक्ष है। इसलिए यहां गर्जन अर्थ ग्रहण कर रहे हैं। अन्य भाषाओं में नाम
हि०- गरजन । म० - यक्षद्रम, गर्जन, अश्वकर्ण । बं०-गर्जन (तेलिया, काली) । अंo - (Gurjun oil tree (गरजन ऑयल ट्री) Wood oil tree (वुड ऑयल ट्री) । o - Dipterocarpus Alatus Roxb (डिप्टेरोकार्पस एलेटस) Dip. Incanus (डिप्टे. इनकेनस) D. Laevis (डिप्टे. ली हिस) ।
उत्पत्ति स्थान- इसके वृक्ष बंगाल, चिटगांव, आसाम, वर्मा, सिंगापुर, मलाया और अण्डमान में बहुत होते हैं।
For Private & Personal Use Only
विवरण- शाल कुल के इसके बड़े ऊंचे वृक्ष ४० १५० फीट तक ऊंचे होते हैं। इसकी कई जातियों में
से
www.jainelibrary.org