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जैन आगम : वनस्पति कोश
के समान होते हैं। फूल सफेद रंग के आते हैं और उनसे सुगंध आती है। फल झरबेर के आकार वाले १/२ से १ इंच लंबे, काले या सफेदयुक्त लाल रंग के होते हैं। इनका स्वाद अत्यन्त खट्टा होता है।
इसकी अन्य दो जातियां होती हैं, जिनमें से एक दक्षिण की तरफ होती है। जिसमें फल बड़े होते हैं, तथा अन्य छोटे फलवाली सभी स्थानों पर होती है जिसे मूल में करमर्दिका कहा गया है। इसका उपयोग सर्प ने काटा है या नहीं इसकी परीक्षा के लिए करते हैं। इसको शीत जल में घिसकर पिलाते हैं। यदि सांप ने कांटा है तो वमन नहीं होता।
(भाव०नि० आम्रादिफलवर्ग पृ० ५७५)
करीर, मृदुफल, तीक्ष्णसार, हुताशन, शाकपुष्प गूढपत्र, ग्रन्थिल, सुफल, क्रकच, तीक्ष्णकंटक और कटुतिक्तक ये पर्याय करीर के हैं।
(कैयदेव नि० औषधिवर्ग श्लोक ३७६, ३७७ पृ० ७०) अन्य भाषाओं में नाम
हिo-करीर, करील, करेल। बं०-करील म०-नेवती, किरल, सोदद। गु०-केरडो, केर। क०-चिप्पुरी। ते०-करीरमु। फा०-सोदाब । ता०-सेंगम्। ले०-Capparis aphylla Roth (कॅपेरिस, एफीला) Fam. Capparidaceae (कॅपेरीडेसी)।
उत्पत्ति स्थान-यह पंजाब, सिंध, कच्छ, पश्चिमराजपुताना गुजरात एवं दक्षिण के उत्तरीभाग में शुष्क प्रदेशों में होता है।
विवरण-इसका वृक्ष झाड़दार, कांटेदार, घना, बारीक शाखाओं से भरा हुआ एवं ६ से ७ फीट तक ऊंचा होता है। पत्ते केवल नवीन शाखाओं पर होते हैं तथा ये १/२ इंच लंबे, रेखाकार, नोकीले, स्वाद में कटु तथा शीघ्र ही गिर जाते हैं। फूल गुलाबी रंग के ४/५ इंच व्यास के गुच्छों में, वसंत ऋतु में फूलते हैं। फल गोल १/२ से ३/४ इंच व्यास के लाल या गुलाबी एवं छोटे से वृत्त पर आते हैं। (भाव०नि० वटादिवर्ग० पृ० ५४१)
करीर करीर (करीर) करील, केर
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SURO
पुष्प
करेणुय करेणुय (करेणुक) छोटी अमलतास, कर्णिकार
भ० २३/८ करेणुकम्। क्ली०। कर्णिकारफले। तच्च विषमयमिति ज्ञेयम्। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० २१५) कर्णिकार के पर्यायवाची नाम
अथ भवति कर्णिकारो राजतरु: प्रग्रहश्च कृतमालः। सुफलश्च परिव्याधो व्याधिरिपुः पंक्तिबीजको वसुसंज्ञः ।।४२।।
कर्णिकार, राजतरु, प्रग्रह, कृतमाल, सुफल, परिव्याध, व्याधिरिपु तथा पङ्क्तिबीजक ये सब कर्णिकार के आठ नाम हैं।
(राज०नि० ६।४२ पृ० २७२)
करीर के पर्यायवाची नाम
करीरको मृदुफलः, तीक्ष्णसारो हुताशनः ।।३७६ ।। शाकपुष्पो गूढपत्रः, करीरो ग्रन्थिलो मतः। सुफलः क्रकचस्तीक्ष्णकण्टक: कटुतिक्तकः ।।३७७।।
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