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जैन आगम : वनस्पति कोश
कंड कंड( ) कंडा
देखें कंडा शब्द।
ठा०८/११७/१
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कंडरीय कंडरीय (कण्टारिका) छोटी कटेरी, रिंगणी
भ० २३/१ विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कंडरीय शब्द कंदवर्ग के शब्दों के साथ है। इसके मूल का उपयोग किया जाता है। इससे लगता है यह छोटी कटेरी ही होना चाहिए। कण्टारिका । स्त्री। कण्टकार्याम्। कण्टालिका (ली)। स्त्री। कण्टकार्याम्। (वैद्यक शब्द सिन्धु पृ० १९२)
उत्पन्न होती है। दक्षिण पूर्व एशिया, मलाया एवं आष्ट्रेलिया के कण्टारिका के पर्यायवाची नाम
उष्ण प्रदेशों में यह पाई जाती है। कण्टकारी कण्टकिनी, दुःस्पर्शा दुष्प्रधर्षिणी।
विवरण-इसका परिप्रसरी क्षुप बहुवर्षायु तथा अत्यन्त क्षुद्रा व्याघ्री निदिग्धा, च धाविनी क्षुद्रकण्टिका॥ ३०॥
कांटेदार होता है। कांड टेढे-मेढे एवं अनेक शाखाओं से युक्त बहुकण्टा क्षुद्रकण्टा, ज्ञेया क्षुद्रफला च सा।
रहते हैं। कांटे सीधे पोले, चिकने, चमकीले एवं ५ से ७ इंच कण्टारिका चित्रफला, स्याच्चतुर्दशसंज्ञका॥३१॥
तक लंबे होते हैं। इनमें साथ में छोटे कांटे भी होते है। पत्ते कण्टकारी, कण्टकिनी, दुःस्पर्शा, दुष्प्रधर्षिणी, क्षुद्रा,
२ से ४ इंच लंबे, १ से ३ इंच चौड़े लट्वाकार आयताकार
से इंच लंबे से व्याघ्री, निदिग्धा,धाविनी, क्षुद्रकण्टिका,बहुकण्टा, क्षुद्रकण्टा या अण्डाकार गहरे कटे हुए या पक्षवत् खंडित होते हैं। पत्रखंड क्षुद्रफला, कण्टारिका तथा चित्रफला ये सब छोटी कटेरी के ।
पुनः खंडित या दन्तुर होते हैं। ये तारकाकार रोमों के कारण चौदहनाम हैं।
खुरदरे होते हैं। फल गहरे नीले रंग के आते हैं। फल गोल आधे __ (राज. नि० ४/३०, ३१ पृ०६७) से एक इंच व्यास के, चिकने और पीले या कभी-कभी सफेद अन्य भाषाओं में नाम
होते हैं, तथा हरी धारियों से युक्त होते हैं। बीज चिकने एवं हि०-कटेरी,लघुकटाई,कंटकारी,छोटी कटाई,भटकटैया, छोटे होते हैं। इसके मूल का उपयोग किया जाता है। इसकी रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटियाली। बं०-कंटकारी। म०- मूल छोटीअंगुली जैसी मोटी एवं सुदृढ़ होती है। रिगणी, भुईरिंगणी। गु०-बेठी,भोरिंगणी, भोयरिंगणी।क०
(भा० नि० पृ० २९०, २९१) नेल्लुगुल्लु। ते० चल्लन मुलग। मा०-पसर कटाई। पं०कंडियारी, बरुम्ब । ता०-कण्डनकत्तरि । अ०-हदक इसिम, शौकतुलअकरब। फा०-बादंगा नवरी, कटाई खुर्द। ले०- कंडा ( ) कंडा, सरकंडा Solanum Xanthocarpum Schrad & Wendl ( PICTT
भ० २१/१७ प० १/४१/२ झन्थोकार्पम् अँड वेण्ड)
विमर्श-कंडा शब्द हिन्दी भाषा का है। संस्कृत में इसकी उत्पत्तिस्थान- यह प्रायःसब प्रान्तों में और सब प्रकार पहचान भद्रमुञ्ज नाम से होती है। पंजाबी भाषा में इसे सरकंडा की मिट्टी में पाई जाती है परन्तु रेतीली भूमि में यह अधिक कहते हैं।
कंडा
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