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जैन आगम : वनस्पति कोश
कडुयरोहिणी कडुयरोहिणी (कटुकरोहिणी) कटुरोहिणी, कटुकी।
उत्त० ३४/१० विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में कडुयरोहिणी शब्द रस की उपमा के लिए प्रयुक्त हुआ है।
अन्य भाषाओ में नाम
हि०-कनेर, कनइल, कनैल, करवीर। बं०-कराबी, करवी। म०-कण्हेर। गु०-कणेर, करेण। ता०-अलरी ते०कस्तूरिपट्टे,गन्नेस।क०-कणगिलु।मल०-कणावीरम्।संथा०राजबाहा। पं०-कनिर। अ०-दिफ्ली, सम्मुलहिमार। फा०खरजहरा। अं०-Sweet Scented Oleander (स्वीट सेटेंड ओलिएण्डर)RooseberrySpurge (रुजबेरी स्पज)ले०Nerium Odorum Soland (नेरियम् ओडोरम्सोलँड) Fam. Apocynaceae (एपोसाइनेसी)।
Nenum odonium, Soland)
विवरण-इसके मूल की लकड़ी सफेद या लाल रंग की होती है। छाल मोटी, लाल रंग की और इसके ऊपर का छिलका भूरे रंग का खड़ बचडा होता है। गंध कड़वी, स्वाद कषैला, और कड़वा होता है। (धन्वन्तरिवनौषधि विशेषांक भाग६ पृ० ११६) देखें लोहि शब्द।
उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः सब प्रान्तों में पाया जाता है।
दक्षिण एवं उत्तर प्रदेश में यह जंगली होता है। बगीचों में फूलों कणइर
के लिए यह लगाया हुआ मिलता है। कणइर (कणवीर) कनेर, सफेद कनेर प०१/२८/१
विवरण-इसका क्षुप मजबूत सदा हरित, सीधी शाखाओं कणवीर के पर्यायवाची नाम
से युक्त एवं प्रायः१० फीट से अधिक ऊंचा नहीं होता। पत्ते
४ से ६ इंच लंबे, करीब १ इंच चौडे, नुकीले एवं एक साथ करवीरो मीनकाख्यः, प्रतिहासोऽश्वरोहकः॥१५३९॥
तीन-तीन रहते हैं। फूल सुगंधयुक्त,श्वेत, रक्त एवं गुलाबी वर्ण शतकुम्भः श्वेतपुष्पः, शतप्राशोऽब्जबीजभृत्।
के करीब १.५ इंच व्यास के एवं व्यस्त छत्राकार होते हैं। फली कणवीरोऽश्वहाऽश्वघ्नो, हयमारोऽश्वमारकः।। १५४०॥
करीब ५ से ६इंच लंबी, चिपटी एवं गोलाकार होती है। बीज करवीर, मीनकाख्य, प्रतिहास, अश्वरोहक, शतकुम्भ,
भूरे वर्ण के रोमावृत अनेक बीज होते हैं। इसके कांड को काटने श्वेतपुष्प, शतप्राश, अब्ज बीजभृत्, कणवीर, अश्वहा, अश्वन, .
' से दूध बहता है। इसके सभी भाग विषैले होते हैं। जानवर हयमार, अश्वमारक ये सब श्वेत करवीर के पर्याय हैं।
इसको नहीं खाते। (भाव० नि० गुडूच्यादिवर्ग० पृ० ३१५) (कैय०नि० ओषधिवर्ग० पृ० ६३१)
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