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जैन आगम : वनस्पति कोश
कसौंदी। गु०-कासोंदरो, कसंदी, कूजो। म०-कासबिंदा, फलियां ३ इंचलंबी तथा आधे इंच से कुछ कम चौडी, लम्बी, हिकल तथा रानटांकला।बं०-केसेन्दा, कालकसुंदा, कालका पतली, चिकनी व चिपटी होती है। बीज प्रत्येक कली में १० कसौंदा।अं०-Negro Coffee Plants(निग्रोकाफी प्लांटस्)। से ३० तक भूरे चक्रिकाकार या गोलाकार होते हैं। कसौंदी और ले०-Cussia Occidentalis (कसीआ ऑक्सीडेन्टलिस्)। चकवड में भेद यह है कि चकवड़ के क्षुप छोटे, पत्ते गोल,
फली पतली गोल और बीज उर्द जैसे होते हैं। कसौदी
(धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग २ पृ० १८२, १८३) Casaia, occidentalis,lim.
कणियाररुक्ख कणियाररुक्ख (कर्णिकार वृक्ष) छोटा अमलतास। कनियार।
ठा०१०/८२/१ कर्णिकारः। । क्षुद्रस्वालुवृक्षे।
(वैद्यकशब्द सिन्धु पृ० २२१, २२२) कर्णिकार के पर्यायवाची नामअथभवति कर्णिकारो राजतरुः प्रग्रहश्च कृतमालः। सुफलश्च परिव्याधो व्याधिरिपुः पङ्क्ति बीजको वसुसंज्ञः।।४२॥
कर्णिकार, राजतरु, प्रग्रह, कृतमाल, सुफल, परिव्याध, व्याधिरिपु तथा पङ्क्तिबीजक ये सब कर्णिकार के आठ नाम
(राज०नि०९/४२ पृ० २७२) अन्य भाषाओं में नाम
हि०-कलियार, कनियार, अमलतास, धनबहेरा, बानर
काकडी। म०-लघुबाहवा। गो०-छोट सोणालु गाछ। ते०उत्पत्ति स्थान-कसौंदी बाहर से यहां लाई गई है और चारों रेल्लचेट्ट, गोगुचेटु।ते०-रेल्लचेट्टाबं०-सोनालु, बन्दरलाटी।
ओर प्रचरता से इसने अपना विस्तार कर लिया है। हिमालय पं०-कनियार अमलतास करंगल। ग०-गरमालो। अं0से लेकर दक्षिण में सीलोन पर्यन्त तथा पश्चिम बंगाल आदि
Pudding Pipe Tree(पुडिंग पाइप ट्री) ले०-Cassia देशों में प्रायः सर्वत्र सुलभ है किन्तु काली कसौंदी अब दुर्लभ Fistula(केशिया फिस्तुला)। होती जाती है। यह प्राय: पर्वतीय प्रदेशों में गांवों के आसपास कहीं-कहीं मिलती है। ब्रह्मदेश में यह अधिक पायी जाती है।
अमलतास. विवरण-शाकवर्ग और सुरसादि गण की यह वनौषधि नैसर्गिक क्रम से मुख्यतः शिम्बी कुल एवं उपकुल पूतिकरंज कुल की है। सर्वसाधारण कसौंदी का क्षुप चकवड़ के क्षुप जैसा वर्षारम्भ में ही कूडाकर्कट वाले खाली स्थानों पर उपज आता है तथा पूर्ण वर्षाकाल तक यह अधिक से अधिक ५-- ६ फीट लंबा सीधा बढ़ जाता है। यह बहुशाखा युक्त होता है। पत्र संयुक्त आमने सामने, प्रत्येक सीक में प्रायः५-५, २ से ४ इंच लंबे तथा १ से ३ इंच चौडे, गोल नुकीले होते हैं। पत्र का ऊपरी भाग चिकना, अधोभाग कुछ खरदरा सा होता है। फूल क्षुद्र, पीतवर्ण के, चकवड के पुष्प जैसे १ इंच व्यास के होते हैं। यह क्षुप वर्षान्त में या शीतकाल में फूलता फलता है। हेमन्त में फलियां परिपक्व होने पर यह सखने लगता है।
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