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जैन आगम : वनस्पति कोश
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उत्पत्ति स्थान-यह प्रायः समस्त भारतवर्ष में ब्रह्म देश, खूब चिकने होते हैं। ये बीज बड़े कड़े होते है। फोडने से अंदर बंगाल,पश्चिम भारतीय द्वीपसमूह,दक्षिण अमेरिका के ब्रेझिल । से पीली दाल निकलती है। पेड़ की लकडी बडी मजबूत होती प्रान्त में तथा अफ्रीका के उष्ण प्रदेशों में पाया जाता है। है। घरों पर छप्पर के काम में या कूप के अंदर पानी की सतह
विवरण-बडा अमलतास और छोटा अमलतास ऐसे दो पर लगाने के काम में आती है। लकडी की राख रंग के काम भेद अमलतास के हैं। बड़े को महाकर्णिकार और छोटे को आती है। (धन्वन्तरि वनौषधि विशेषांक भाग १पृ० २१५ से २१७) कर्णिकार कहा गया है। छोटा अमलतास या कर्णिकार का पेड बडे अमलतास से कम कद का रेत मिश्रित भूमि (मध्य प्रदेश
कण्ह चांदा के जंगल में तथा अन्य ऐसे ही जंगलों में) पाया जाता कण्ह (कृष्णा) कृष्ण सारिवा, दुधलत प० १/४०/३ हैं। इसकी फलियां बडे अमलतास की फलियों की अपेक्षा विमर्श-प्रस्तुत प्रकरण में "कण्ह-सूरवल्ली य" पाठ है। लंबाई और गोलाई में छोटी होती हैं। इसकी पुष्पमाला निर्गन्ध कण्ह और सूरवल्ली का समास है। यहां कण्ह शब्द कण्हवल्ली होती हैं। पेड की गोलाई ३ से ५ फुट तक होती है। शाखायें का द्योतक है इसलिए प्रस्तुत प्रकरण में कण्हवल्ली का अर्थ खूब घनी मोटी और पतली होती है। शाखाओं से एक प्रकार किया जा रहा है। कण्हवल्ली यानि कृष्ण वल्ली। इसका संक्षिप्त का लाल रस निकलता है जो जमकर पलास के गोंद जैसा हो नाम या पर्यायवाची नाम कृष्णा भी है। जाता है। पेड़ की जड़ें जमीन में बहुत गहरी गई हुई होती हैं। कृष्णवल्ली । स्त्री। कृष्णतुलस्याम्। कृष्णसारिवायाम्। जड़ की लकडी बडी कड़ी होती है तथा ऊपर छाल धूसर
(वैद्यक शब्द सिन्धु पृ०३१३) लालवर्ण की रस से युक्त होती है।छाल की गंध उग्र और स्वाद कृष्णा के पर्यायवाची नाममें कुछ कसैली कडुवी होती है। पत्र जामुन के पत्र जैसे सारिवाऽन्या कृष्णमूली कृष्णा चन्दनसारिवा। अंडाकार, आमने सामने जोड़े से लंबी सीकों पर लगते हैं। पत्र भद्रा चन्दनगोपा तु चन्दना कृष्णवल्ल्यपि॥११८॥ धारण करने वाली सींक १२ से १८ इंच तक लंबी होती है। दूसरे प्रकार की सारिवा को कृष्णमूली कहते हैं। जिसमें पत्रों के ४ से ८ जोडे लगते है। पत्ते की लंबाई ३ से कृष्णमूली, कृष्णा, चन्दनसारिवा, भद्रा, चन्दनगोपा, चन्दना ५ इंच तक (कर्णिकार से पत्ते की लंबाई १.५ से ३ इंच) और तथा कृष्णवल्ली ये सब कृष्णसारिवा के नाम हैं। चौडाई १.५ से २.५ इंच तक होती है। पत्र का पृष्ठ भाग चिकना
(राज०नि० व०१२/११८ पृ०४२०) और डंठल ह्रस्व होता है। कर्णिकार में पत्तियों के झड जाने ___ अन्य भाषाओं में नामपर प्राय:वैशाख या जेठ मास में पीत पुष्पों की माला से सम्पूर्ण हि०-कालीसर, काली अनन्तगूल, दुधलत बं०-कृष्ण पेड बडा ही सुन्दर दिखाई देता है। इसमें गंध नहीं होती। प्रत्येक अनन्तमूल,श्यामालता।म०- श्यामलता।क०-करीउंबु।ते०-- पुष्प में प्राय: ५ पंखुडियां होती हैं। पुष्पों का डंठल १.५ से नलतिग। ले०-Ichnocarpus fruitcscens (इक्रोकार्पस् २.५ इंच लंबा, मुलायम और नीचे की ओर झुका हुआ होता टेसेन्स)। है। पुष्प डंठल के मूलभाग में तीन पुष्पपत्र होते हैं जो १.८ उत्पत्ति स्थान-इसकी लता भारतवर्ष के सभी भागों में से ३.१६ इंच लंबे तथा धूसर चमकीले रोवों से व्याप्त रहते होती है। हैं। बीच का पुष्पपत्र कुछ अधिक लंबा होता है। फली ज्येष्ठ विवरण-यह बहुत फैलने वाली एवं काष्ठीय होती है। मास में प्रायः पुष्पों के झड जाने पर आती हैं। ये फलियां आरंभ पत्ते चिकने, आयताकार, अण्डाकार, जामुन के पत्रसदृश में पतली पतली सलाई जैसी नील हरित वर्ण की निकलती क्षोदलिप्त रहते हैं। पत्रसिराएं पत्र तट के पहले ही परस्पर मिली है। जो वर्षा के अंत तक २.५ फुट तक लंबी हो जाती है। छोटे हुई रहती है। पुष्प पाण्डुरपीत और फलियां दो-दो एक साथ अमलतास की फलियां अधिक से अधिक १.५ फुट लंबी और रहती हैं। काण्डत्वक रक्ताभ कृष्ण एवं पतने परतों में छूटने गोलाई में ३/४ से १ या १.५ इंच तक नलाकार होती है। बीज वाली होती हैं। इस लता से अत्यधिक दूध निकलता है। इसके फली के प्रत्येक परत में २ से ३ बीज होते है। प्रत्येक फली मूल में कोई गंध नहीं होती। ( भाव०f ० गुडुच्यादि वर्ग पृ०४२७) में कुल २५ से १०० तक बीज चक्रादार, रक्ताभ धूसरवर्ण के
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