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जैन आगम : वनस्पति कोश
मैदानों में सूखे प्रदेशों में निसर्गत: जंगली स्वयं उत्पन्न होती है। देहली के आसपास पहाड़ियों पर बहुतायत से उगी हुई है। विवरण - यह बबई तुलसी का ही एक जंगली भेद है। पौधा बहुशाखी, छोटा, सीधा, १.५ से २ फीट ऊंचा, सुमधुर किन्तु तेज गंधयुक्त, पत्ते कटावदार किनारे वाले, पुष्प श्वेत रंग के, चक्राकार गुच्छों में, आसपास लगे हुए। प्रति गुच्छे में प्रायः ६ पुष्प होते हैं। बीज किंचित् गुलाबी आभायुक्त काले रंग के पोस्त - बीज (खसखस ) के आकार वाले होते हैं।
वास्तव में तो यह उक्त वर्णित बबई तुलसी है तथा इसीलिए भावमिश्र जी ने इसे बबई (बर्बरी) के अन्तर्गत ही माना है, किन्तु यह जंगली शुष्क वातावरण में उगने से, उससे भिन्न नाम, रूपादि वाली हो गई है। इसके पत्र एवं विशेषतः पुष्प बबई से बहुत छोटे-छोटे होते हैं। बबई (बर्बरी) की अपेक्षा इस पर छोटे-छोटे खुरदरे रोम अधिक छाए रहते हैं । तथा इसकी गंध बहुत तेज होती है। इसके पत्तादि अधिक सूखने पर शीघ्र ही चूर-चूर हो जाते हैं । बबई के पत्तादि सूखने पर भी शीघ्र चुरा नहीं होते ।
( धन्व० वनौ० विशे० भाग ३ पृ० ३७० )
अज्जुण
अज्जुण (अर्जुन) तृण भ० २१ । १९ जीवा. ३।५८३ प० १४२ १ अर्जुन के पर्यायवाची नाम -
तृणे स्यादर्जुनं
तृण और अर्जुन ये दो नाम तृण के हैं।
सर्वं च तृणमर्जुनम् इति भागुरिः । सब तृणों को अर्जुन कहते हैं ।
(सटीक निघंटुशेष श्लोक ३७८)
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( सटीक निघंटु शेष पृ० २०३ )
अज्जुण
अज्जुण (अर्जुन) अर्जुन वृक्ष भ० २२/३ प० १।३६ । ३ अर्जुन के पर्यायवाची नाम -
अर्जुनः ककुभः पार्थ, रिचत्रयोधी धनञ्जयः । वीरान्तकः किरीटी च, नदीसर्जोपि पाण्डवः ॥ १०८ ॥ अर्जुन, ककुभ, पार्थ, चित्रयोधी, धनञ्जय, वीरान्तक,
किरिटी, नदीसर्ज, पाण्डव ये सब पर्याय अर्जुन के हैं। ( धन्व० नि० ५/१०४ पृ० २५१ )
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अन्य भाषाओं में नाम
हि० - अर्जुन, कहू, कोह । बं०- अर्जुनगाछ । म० अर्जुन, अर्जुनसादडा। गु० - अर्जुन। पं० - जुमरा । ते ० - तेल्लमद्दि। क०मात्र । ता० - मरुद्मरम् । ले०- Terminalia arjuna (टर्मिलेनिया अर्जुन) Fam Combretacea (कॉम्ब्रेटेसी) ।
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239. T. arjuna Bedd. (कून)
उत्पत्ति स्थान- यह सब प्रान्तों में कहीं न कहीं पाया जाता है किन्तु हिमालय की तराई, छोटा नागपुर, मध्य भारत, बंबई एवं मद्रास में अधिक होता है।
विवरण- इसका वृक्ष ६० से ७० फीट तक ऊंचा होता है। पत्ते अमरूद के पत्ते के समान ३ से ६ इंच तक लम्बे, छोटीछोटी टहनियों पर कहीं विपरीत और कहीं एकान्तर लगे रहते हैं। हलके पीले रंग के नन्हे नन्हें फूलों के घनहरे से आते हैं। फल कमरख के समान ५ पहल वाले १ से १.५ इंच लम्बे एवं कुछ अंडाकार होते हैं। (भाव० नि० वटादिवर्ग० पृ० ५२३) इसकी छाल सफेद रंग की होती है और उसमें दूध निकलता है। (शा० नि० वटादिवर्ग० पृ० ५०३)
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अट्टई
अट्टई ( आवर्त्तकी) भद्रदन्ती, भगतवल्ली प० १।३७ ३ विमर्श - पाइअसद्दमहण्णव में सयरी शब्द का संस्कृत रूप शतावरी दिया हुआ है। वैसे ही अट्टई शब्द का संस्कृत रूप आवर्त्तकी होता है। आवर्तकी के व का लोप करने के बाद आर्तकी रूप रहता है जो अट्टई से अट्ट (आर्च) की तरह सिद्ध
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