Book Title: Haryanvi Jain Kathayen
Author(s): Subhadramuni
Publisher: Mayaram Sambodhi Prakashan

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Page 13
________________ भाषा के प्रसंग को लेकर कुछ अधिक कह गया। पुस्तक के विषय में अब और अधिक न कहकर उनके बारे में बताना आवश्यक है, जिनकी कृपा, आशीष और सहयोग से यह पुस्तक लिखकर आप तक पहुँचा सका । अपने विषय में इतना कहना आवश्यक समझता हूँ कि मैं तो मात्र कठपुतली हूँ । इस कृति के साथ अन्य सभी कृतियों के लिखने वाले सूत्रधार मेरे पूज्य गुरुवर ही है । उनके विषय में कुछ न कहना कृतघ्नता होगी। मैं परम श्रद्धेय, चारित्र चूड़ामणि, तप त्याग-संयम की मूर्ति गुरुदेव मुनि श्री मायाराम जी महाराज का कृतज्ञ भाव से वंन्दन-स्मरण करता हूँ कि जिनका अदृश्य आशीर्वाद सदा ही मेरा सम्बल बना है । प्रातः वंदनीय परम श्रद्धेय गुरुदेव योगिराज श्री रामजीलाल जी महाराज मेरे गुरुमह थे, अर्थात् दादा गुरु । बताना चाहूँगा कि मेरे जीवन का निर्माण उनकी अहैतुकी कृपा के कारण हो सका है। जब मैं अबोध और अयाना था, तब ये कथाएँ मैंने उन्हीं के श्री मुख से सुनी थी। सच तो यह है कि यह सब उन्हीं का है, मेरा नहीं । परम आराध्य गुरुदेव, जैन संघ के शास्ता आचार्य कल्प, शासन-सूर्य गुरुदेव मुनि श्री रामकृष्ण जी महाराज जिन्होंने मुझ अबोध को बोध, मूक को वाणी और लेखनी प्रदान की है । गुरुदेव श्री के प्रति मेरा रोम-रोम कृतज्ञ है, उनकी कृपा का आभारी है और रहेगा । अन्त में अपने सहयोगी मुनियों और श्रद्धाशील श्रावकों के सहयोग का उल्लेख करना भी चाहूँगा । गुरुदेव श्री के ये सभी सन्त रत्न, श्री रमेश मुनि जी, श्री अरुण मुनि जी, श्री नरेन्द्र मुनि जी, श्री अमित मुनि जी और श्री विनीत मुनि जी श्री हरि मुनि जी मेरी सेवा सहकार का सदा ध्यान रखते है । इसके साथ ही स्नेहाधार सम्बोधि (मासिक) के यशस्वी सम्पादक प्रिय डा० विनय 'विश्वास' जिसे प्यार से मैं 'बिनू कहता आया हूँ, उनकी श्रद्धा के मोती भी इस कृति में जुड़े हैं । हरिगन्धा मासिकी (हरियाणा सरकार ) के पूर्व सम्पादक परमगुरुभक्त डा० सोमदत्त जी बंसल (चण्डीगढ़) तथा हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान श्री सत्य प्रकाश जी गोस्वामी, इन दोनों ने इस कृति के लिये अपने अमूल्य सुझाव प्रस्तुत किये हैं। ये सभी मेरे आशीर्वाद के सुयोग्य पात्र हैं ? पाठक लाभ उठाएँ, इसी आशा शुभाशंसा के साथ जैन स्थानक, पी. पी. ब्लाक, पीतमपुरा, दिल्ली- ३४ (viii) सुभद्र मुनि

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