Book Title: Gunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Author(s): Yashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
Publisher: Patashe Prakashan Samstha

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Page 16
________________ सम्यग्ज्ञानचंद्रिका-पीठिका विपरीत विचार प्रगट करते हैं। उनको समझाते हैं - अनेक जीव केवल प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग का ही पक्ष करके इस करणानुयोगरूप शास्त्र के अभ्यास का निषेध करते हैं। 11. प्रश्न : उनमें से प्रथमानुयोग का पक्षपाती कहता है कि वर्तमान में जीवों की बुद्धि बहुत मंद है, उनको ऐसे सूक्ष्म व्याख्यानरूप शास्त्र में कुछ भी समझ में नहीं आता; इसलिये तीर्थंकरादिक की कथा का उपदेश दिया जाय तो ठीक से समझ लें और समझकर पाप से डरकर धर्मानुरागरूप हों; इसलिये प्रथमानुयोग का उपदेश कार्यकारी है। उत्तर : अभी सर्व जीव तो एक से नहीं हैं, हीनाधिक बुद्धि दिख रही है; अतः जैसा जीव हो, वैसा उपदेश देना। अथवा मंदबुद्धि जीव भी सिखाने से, अभ्यास करने से बुद्धिमान होते दिखाई दे रहे हैं। इसलिए जो बुद्धिमान हैं, उनको तो यह ग्रन्थ कार्यकारी है ही और जो मन्दबुद्धि हैं, वे विशेषबुद्धिवालों द्वारा सामान्य-विशेषरूप गुणस्थानादिक का स्वरूप सीखकर इस शास्त्र के अभ्यास में प्रवर्तन करें। 12. प्रश्न : यहाँ मंदबुद्धिवाला कहता है कि यह गोम्मटसार शास्त्र तो गणित समस्या का वर्णन करनेवाला अनेक अपूर्व कथन सहित होने से बहुत कठिन है, ऐसा सुनते आये हैं। हम उसमें किस प्रकार प्रवेश कर सकते हैं ? उत्तर : भय न करो। इस भाषा टीका में गणित आदि का अर्थ सुगमरूप बनाकर कहा है; अतः प्रवेश पाना कठिन नहीं रहा। इस शास्त्र में कथन कहीं तो सामान्य है, कहीं विशेष है, कहीं सुगम है; कहीं कठिन है। वहाँ यदि सर्व अभ्यास बन सके, तो अच्छा ही है और यदि न बन सके तो अपनी बुद्धि के अनुसार जितना हो सके, उतना ही अभ्यास करो, अपने उपाय में आलस्य नहीं करना। ___ तूने कहा - जीव प्रथमानुयोग सम्बन्धी कथादिक सुनने से पाप से डरकर धर्मानुरागरूप होता है। वहाँ दोनों कार्य-पाप से डरना और धर्मानुरागरूपहोना शिथिलता

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