Book Title: Gadyachintamani
Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 394
________________ ५ गद्यचिन्तामणिः [ २४१ सैन्यप्रयाण शाक्चरशताङ्गशकटप्रमुखपृष्ठारोपिता भी प्रकशिपुसमेतसकलहे तिनि हेमाङ्गदविषयं विविशुषि सैन्ये, राजन्योऽप्युत्तरेण राजपुरीमुपकार्यं कल्पयेयुरिति शिल्पिसमाजाध्यक्षानादिक्षत् । प्राविक्षच्च तां क्षणकल्पितां स्वसंकल्पसिद्विशङ्काप्रहृष्टेन काष्ठाङ्गारेण प्रसभं प्रत्युद्यातः पृथिवीपतिः । ३५६ $ २४२. अनन्तरमापाटलपटकुटी घटनाया सक्लान्तस्वान्तेषु गृहचिन्तकेषु विलुठितोत्थितविधूतापीयमानतोयेषु तोयाशयेषु बहुप्रयामप्रापितालान स्तम्भेषु मदम्तम्बेरमेषु सद्यः पाकसंपादनोद्युक्तमनसे महान समुपस्थितेषु पुरस्तादेव पौरोगवेषु सत्वरसंकल्पितमापणमासेदुषि प्रथमतरपणायनत्रणभाजि वणिजि वामहस्तावलम्बितमस्तक कुटोष्ठासु कूपसरिद वेषिणीपु खरा वैशाखनन्दनाः, करमा उष्ट्रा, महिषाः सैरियाः, शात्रवरा वृत्रनाः शताङ्गानि रथाः शकटानिन्ः ते प्रमुखा येषां तेषां पृष्ठेषु आरोपिता अधिष्ठापिता अभीष्टकशिपुसमेता अभिलषित भोजनाच्छादनादि१० सहिताः सकळ तयो निखिलशखाणि यस्मिंस्तस्मिन् । राजन्योऽपीति-- राजन्योऽपि गोविन्दमहाराजोऽपि राजपुरीमुत्तरेण 'एना द्वितीया' इति द्वितीया 'उपकार्या राजाहपटकुटीं कल्पयेयुः' इति शिविसमाजस्य कामकरसमूहस्याध्यक्षान् प्रमुखान् आदिशत् आदिदेश । प्राविश्रचेति - प्राविशच्च प्रविवेश च क्षणकल्पितां सस्वरनिर्मितां तामुपकार्या स्वकल्यस्य निजमनोरथस्य सिद्धेः शङ्कया प्रहृष्ट: प्रसन्नस्तेन काष्टाङ्गारेण प्रथमं हा प्रत्युद्यात्वा सस्कृतः पृथिवीपतिर्गोविन्दमहीपतिः । १५ ६ २४२. अनन्तरमिति - अनन्तरं प्रत्युद्गमनानन्तरम् आपाटलानामीद्रवर्णानां पटकुटीनां घर निर्माणे य आमासः खेदस्तेन क्लान्तं खिनं स्वान्तं चितं येषां तथाभूतेषु गृहचिन्तकेषु सत्सु आदी त्रिः पश्चादुत्थिता' इति विलुठितोत्थिताः तथाभूता विधूतकायाश्च कम्पितशरीराश्व ये हया वाजिनस्तैः पीयमानं तोयं येषां तथाभूतेषु तोयाशयेषु जलाशयेषु सरसु, मदस्तम्बेरमेषु सत्तमतङ्गजेषु बहुप्रयासेन महाप्रयत्नेन प्रापिता आलानस्तम्भा बन्धनस्तस्मा यैस्तथाभूतेषु सत्सु सो समिति पाकसंपादने भांजन२० परिपाचन उद्युक्तं मानसं येषां तेषु पौरोगवेषु पाचकेषु पुरस्तादेव पूर्वमंत्र महानसं पाकशाकाम् उपस्थितेषु प्रालेषु सत्सु प्रथमतरं सर्वतः पूर्व पणायने विक्रयणे स्वरणं शैध्यं भजति तथाभूतं वणिजि व्यापारिणि सत्र संकल्पितं शीघ्रनिर्मितम् आपणं हद्दम् आसेदुषि प्राप्तवति सति वामहस्तेनावलम्बिता गृहीता मस्तकउखाड़े हुए समीपवर्ती वृक्षोंके लट्ठोंसे जिसमें मार्ग वाघापूर्ण थे। गलेकी रस्सीको रगड़ते उचड़ी हुई छालसे युक्त बाँधनेके वृक्षोंको ऊपर देख-देखकर जिसमें वनचर हाथियों के २५ शरीरका अनुमान कर रहे थे । प्रतिद्वन्द्वी हाथी की गन्धको सूँघने से बिगड़े हुए जंगली हाथीको पकड़ने की हठ करनेवाले श्रेष्ठ योद्धाओंके कोलाहल से जिसमें दिशाएँ भर गयी थीं। तथा जिसके अभीष्ट अन्न और वस्त्रोंसे सहित समस्त हथियार हाथी, घोड़े, गधे, ऊँट, भैंसे, मेढ़े, बैल, रथ और गाड़ी आदि प्रमुख वाहनोंके पृष्ठपर रखे हुए थे। ऐसी सेना जब हेमांगर देश में प्रवेश करने को उद्यत हुई तब गोविन्द महाराजने शिल्पिसमाज के प्रमुखोंको आदेश ३० दिया कि राजपुरीके उत्तरकी ओर राजवसतिका बनायी जायें। राजवसतिका क्षण-भर में हो तैयार हो गयी और अपने संकल्पकी सिद्धिकी शंकासे हर्षित काष्टांगारने जिनकी जोरदार अगवानी की थी ऐसे गोविन्द महाराजने उसमें प्रवेश किया । ९२४२. तदनन्तर जब घरोंकी चिन्ता रखनेवाले लोग कुछ कुछ लाल डेरों के बनाने से खिन्न चित्त हो गये, लोटकर खड़े हुए और शरीरको कम्पित कर चुकनेवाले घोड़ोंके द्वारा ३५ जब जलाशयोंका जल पीया जाने लगा, मदमाते हाथी जब बहुत भारी प्रयासके बाद बाँधने के खम्भोंके पास ले जाये गये, शीघ्र ही रसोई तैयार करने में तत्पर चित्तवाले रसोइया जब पहले से ही रसोई-घरों में उपस्थित हो गये, सबसे पहले बिक्री करने के लिए शीघ्रता +

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