Book Title: Gadyachintamani
Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 486
________________ - ४४८ १९ अभिहित - कथित - अभीशुजात - किरणोंका समूह ६०११०९ अभ्यागत अतिथि १८ ११८ भमरमहीरुह-कल्पवृक्ष अमृतकर मित्र-चन्द्रमा के समान १०४।१७० अमृता शिन्- देव, सुदर्शनयक्ष १४९।२२५ ३।२३ श्रम्बक-नेत्र अस्त्रक युग-नेत्र युगल १२५।१९५ ४८ ९० ३।२३ ९।३९/ अम्बुजासन - ब्रह्मा अयुग्मशर - कामदेव अरविन्दसद्मन् - ब्रह्मा अश्शुिद्धान्तावशेष - शत्रुके अन्तःपुरको छोड़कर २५०।३७२ अवनेमि - पृथिवी अर्णवाम्बरा - पृथिवी अर्थश्रेष्ठ - वैश्यशिरोमणि ६२ ११३ ३६।७५ ९२ १५१ अलक-व - चूर्णकुन्तल- आगे के बाल ९९ १६४ अलंकर्माण कार्य करने में समर्थ ७८।१३३ भळिकतद- ललाटतट २१६१३२२ अलिकतट विलुमित- ललाटतटपर बिखरे हुए अवरजा - छोटी बहिन ४३।८२ अवसित-सुशोभि १०३.१६८ अवनीरुयतन - वृक्षका गिरना १५/४८ अविरामम् - निरन्तर १९७ । २९३ अव्याजरमणीया स्वभाव सुन्दरी १९६ २९३ अग्रजिन-निष्पाप १६९।२५९ अशिवशिवा-अमाङ्गलिक शृगाली १५७१२३७ ३५/७३ गद्यतामणिः अश्वीय श्रोड़ोंका समूह २२०५५ अष्टापद-स्वर्ण २३८५७ अतितृण करीर - हरे हरे तृणोंके अग्रभाग १०१४ अहर्मुख - प्रातःकाल ६९।१२० महाय - शीघ्र १३४/२०७ आ आकल्पान्तर दूसरा आभूषण ६०१०९ आकामासुरा - आभूषणोंसे सुशोभित २६२३९१ आकल्पम्-कल्पकाल तक २४३।३६० आखण्डलकोदण्ड- इन्द्रधनुष १८०।२७१ छोट-छुड़ाना ३०१८ आयताजात मौज्य - धनवत्ता के कारण उत्पन्न मूर्खता ६३।११५ भादयपरिवृढ-यति ४२।८१ आत्मनिष्ठ अरिवदूवर्ग-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य ये छह अन्तरंग शत्रु हैं २६६१३९८ आदक्षितारोपण विवाहके समय एक नेग २६२/३९० आधिक्षीणा - मानसिक उपधासे १३२।२०४ आधोरण - महावत १४४।२१७ आधोरणानुगुण्य- महावतको कृश अनुकूलता ९५।१५४ २७.६२ आभिजात्य - कुलीनता ९०११४६ आभिरूप्य सुन्दरता ९० । १४६ भाग्रेडित- पुनरुक्त आयल्लक काम १३७/२०९ आयल कमर- कामजन्य उत्कण्ठाका समूह १७७/२६८ भारणित - शब्दायमान आरसित - शब्द ३।१९ १.१२ आराम-उपवन आकोकशब्द-जय-जय शब्द - १।११ २१९/३२५ आळी - बाण चलाने का एक आसन १९१।२८७ भावमान दो जाती हुई ४०१८० अश्यानता - शुष्कता ४४२५ आशुशुक्षणि- आग २०७।३०७ भास्थान मण्डपोदेश सभा मण्डपका स्थान ६०।११० आहार्याहरणविषणा - आभूषण लानेका अभिप्राय २४१।३५४ उ उजाङ्गण - झोपड़ीका मांगन १६८/२५५ उड्डीयमान उड़ते हुए ३।१९ म्मित खड़े किये हुए उदश्वित्-छाँछ उदन्या-प्यास ५१।९६ उत्तरच्छद-विस्तरका चादर १२२/१९० उत्तमाङ्ग - शिर १००११६५ उस्को चोपजीविन् - घूससे जी बिका करनेवाला ६४।११६ उसप्तहाटक-तपाया सुवर्ण ३२१,२२ ७७/१३० १।१३ उद्गमोत्कण्ठमानकळकटी फूलों के लिए बेचैन स्त्रियाँ २१०:३१३ उन्नता - उदार, ऊंची १७९१२७० उत्पीड-समूह ३५०७३ उन्मस्तक - खूब बढ़ी हुई १५०१२२७ उपघ्न- आश्रय १६५।२५१ - - उपहर-एकान्त स्थान ५६।१०४ उभयसविभगत- दोनों ओर स्थित २९/६३

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