Book Title: Gadyachintamani
Author(s): Vadibhsinhsuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 488
________________ ४५. गचिन्तामणिः कूलंकष कुल्या-लबालब भरो खड़गकालिन्दी- तलवाररूपी हुई नहर ३॥१८ घनसार-कपुर १९२।२८९ कृकवाकु-मुर्गा ११० · यमुना नदी ५।२७ धर्मबिन्दु-पसीना १२२।१९० कृतकशिपु जो भोजन कर चुका खरखरखावधरा-तीक्ष्ण खुरोंसे घर्माभिधान रसातल-धर्मा२१९१३२६ खुदी पृश्निदो २०४।३०३ रत्नप्रभा नामक नरककी भूमि कृतनप्रष्ट-अत्यन्त कृतन खिलीकृत-उपद्रुत ६०।१०९ १५०१२२८ खलुरी-सेनाका अभ्यास स्थान, घुसूण-केशर १९२१२८९ कृतज्ञचर-पहलेका कुता दलहन-परछो १।१३ २५२१३७५ खलूस्किा-सेनाका अभ्यास स्थान - चक्षुप्य-प्रोतिपात्र १७३१२६२ कृतज्ञमानहर-कृत उपकारको चटुलाचल-चंचलपर्वत 'माननंबालों में श्रेष्ठ २५२५३७५ ९१.१४८ कृतहस्त-कार्य करने में समर्थ गगनधुनी-आकाशगंगा धपद्धांशु-सूर्य ८३।१३७ . .. ७७१३२ कृषीनि अस्ति माकाशरूपी विष्णु चतुग्ण-बल-हाथी, घोड़ा, रथ केदार-खेत और पयादे इन चार अंगोंसे १।१२ कैलिशिखावल-क्रीड़ा मयूर . गनिमीलन-उपेक्षा१३३१२०६ सहित सेना ३०६५ !. ३।२२ गणकगण-ज्योतिषियोंका समह - चतुरम्तयान-पालकी १०५।१७३ केशहस्त-केशपाश -- ७:३६ ११९११८६ चतुरूपाय-साम, दान, दण्ड, केशाकशिता-बालोंको पकड़कर गणरात्र-बहुत-सी रात्रियोंका भेद ८३८ होनेवाला युद्ध ७५॥१२७ समूह ११९६१८६ ।। चरीरुश्चक्र-भ्रमरसमूह केसरसंकटा-केसरसे व्याप्त डकी गोलगोल १२३।१९२ १।१२ चट्टानें . १४८।२२२ चन्द्र शाला-महलका उपरिमकैरवाकर-कुमुदवन १४४६ गीर्वाणगिरि-सुमेरु पर्वत माग ११।४२ कोकप्रिया-चकवी १६६।२५२ १५२१२३२ चन्द्रोपक-चदेवा ९७।१५८ कोशनिहित-म्यानोंमें रखे हुए गुण-धनुषकी डोरी, दया आदि। चरू-नैवेद्य २०१५ ४६२८९ ९६६१५७ चमरज-वर ९७१५९ कोहल-सुपारीके फूल १।१२।। गुणनिका-अम्यास ४७१९२ चम्पकचन्द्र-यम्पाके वृक्षोंका कौक्षेयक-तलवार १९:१६२ ।। गृहमधिधर्म-गृहस्थ धर्म समूह ११० कौटिल्य-मायाचार-टेदापन ५५३१०१ धामीकरकिरीट-स्वर्णमुकुट १७९।२७० गो-पृथिवी, गाय ११४ १५।४८ कौतुकागार-रतिगृह १२१।१९० गोपतित्व-पृथिवीका राज्य, बैल- चामीकरकरण्ड-सोनेकी डिबिया कौवेरककुम-उत्तर दिशा पना ६२१११३ १८११८८ गोमिन-गायौंका स्वामी धामीकरपर्यक-सुवर्णके पलंग क्रमलक-ऊँट ९।१५१ १८००२७२ ५१२९७ केङ्काराराव-कांसे के बरतनोंमें । गोसर्ग-प्रातःकाल १९७।२९६ - चिकोट-गिलहरी ११२ आघात लगनेपर निकलने- गोसंन्य-गोपाल ८७:१४२ चित्रीयाविष्ट-आश्चर्यसे युक्त वाला शब्द ३।२१ । गोसंख्य प्रकाण्ड-गोपालोंमें श्रेष्ठ ५४।१०० क्षत जवाहिनी-खूनकी नदी ७७।१३२ चूर्णविगान-चूर्णको निन्दा ११५।१८४ ग्राम-स्वरोंका समूह १०९।१७६ १२९।२०० गड गुण

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