Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 28
________________ 27 : ५४८ द्वात्रिंशिका • विषयमाहा . લોકસંજ્ઞાત્યાગમાં કલ્યાણ .................... ५३७ प्रभावक्षनी या अनावश्य ............. ५६१ धर्माऽविरोधिलोकाचारानुवर्तनम् .................. ५३८ प्रमाणलक्षणप्रणयनवैफल्यम् ....................... ५६२ पुद्धिने 5A............................. ५३८ | प्रमाणलक्षणप्रणयनेऽनवस्थाऽऽपादनम् ............... भगनी ३जदूपता ..................... ५४० अर्थसिद्धिप्रकारप्रकाशनम् ............................ ५६४ ८- वादद्वात्रिंशिका प्रमाणलक्षणमीमांसा ......... .५६५ सप्तविधवादलक्षणप्रकाशनम् .. ................ ५४१ | उदयनाचार्याऽऽक्षेपोपदर्शनम् ... ...................... ५६६ दुःसंज्ञाप्यजीवत्रैविध्योपदर्शनम् .................... ५४२ ઉદયનાચાર્યનો આક્ષેપ પ૬૬ शुभवा................................... ५४२ प्रमाणप्रयोजनोपदर्शनम् ............................... ५६७ वादानर्हस्वरूपप्रकाशनम् ........... ५४३ | अर्थव्यवस्थायां प्रमाणं प्रयोजकं विवाहy विवेयन ........ __न तु तल्लक्षणम् ..... ५६८ छलस्वरूपाऽऽवेदनम् ................................. ५४४ | यनाया। साक्षेपनु नि२।७२७॥ ........... ५६८ जाति-जल्पस्वरूपविचारः .............................. ५४५ / लक्षणप्रयोजनप्रदर्शनम् ................................ ५६९ विवादे विजयदौर्लभ्यम् .............................. ५४६ | विविधानां प्रमाणलक्षणानां निर्देशः ............... ५७० धर्मवाहन नि३५९ ..... ....... ५४६ धर्मवादे प्रमाणलक्षणानुपयोगः .................... ५७१ मध्यस्थस्वरूपप्रकाशनम् ......................... .५४७ उपलव्यतिरे. क्ष! भीमांसा ............... ५७१ सभालक्षणोपदर्शनम् .............................. | संमुग्धधर्मिज्ञानेन कार्यसिद्धिविचारः ............ ५७२ ધર્મવાદ ફળવિચારણા ५४८ | | अप्रामाण्यशङ्कानिरासविचारः .................... ५७३ ज्ञानगर्वेण वादकरणे कर्मबन्धः ..................... ५४९ विशेषांशसन्देहस्य तत्त्वप्रतिपत्त्यनुकूलता ........... ५७४ वादोपयोगिसम्पत्प्रकाशनम् ....................... .... ५५० | समूहालम्बनैकांशसंशयेऽपरांशाऽसंशयविचारः ..... ५७५ निष्कारणवादकरणे प्रायश्चित्तम् .... ................ ५५१ | तत्त्वप्रतिपत्तिप्रयोजकद्योतनम् ....................... ५७६ गुरुलाघवपर्यालोचनेन वादः कार्यः ................. ५५२ आत्मनित्यतामीमांसा ................................. ५७७ भगवतोऽमढलक्ष्यता .................................. ५५३ | भात नित्य मात्ममत Satus . ५५३ | Asia नित्य भात्ममते सि असंगत .... ५७७ भगवद्देशनासाफल्यादिमीमांसा . ....... ५५४ | साङ्ख्यसम्मतहिंसाविचारः ......................... ५७८ धर्मवाहन विषयनी विया२॥ ..... ५५४ | एकान्तनित्यवादे हिंसाया असम्भवः ............. ५७९ धर्मवादविषयविचारणा ........... ................ |मरणस्वरूपविचार .................................... ५८० વિવિધ ધર્મસાધનનિરૂપણ.. ५५५ | मनोयोगध्वंस३५ डिंसा मसंगत ............. ५८० यम-नियमादिस्वरूपविमर्श अर्थसमाजसिद्धत्वविमर्शः .......................... ५८१ अहिंसादीनां सर्वतन्त्रव्यापकत्वम् ................. ५५७ मनोयोगघाताऽसम्भवः ................................... ५८२ कुशलविभागेऽनेकान्तवादप्रसरः ................... ५५८ | आत्मवैभववादे देहसम्बन्धाऽसम्भवः दशविधाऽकुशलस्वरूपविभावनम् ............. ५५९ | मेन्तनित्य भात्मानो Pic५ असंभव ... ५८3 स्वसिद्धान्तानुसरणेनैव आकाशस्य जन्यत्वोपदर्शनम् ......................... ५८४ विषयव्यवस्थामीमांसासाफल्यम् ................... ५६० | निष्क्रियस्य देहसंयोगाऽसम्भवः ..................... ५८५ प्रमाणलक्षणमीमांसा .... ........................... ५६१ | विन्ध्यवासिमतमीमांसा ............................... ५८६ For Private & Personal Use Only .......... .............. ५८३ Jain Education International www.jainelibrary.org

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