Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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.४९२
.............. ५१९
.........
४९५ ૪૯૫
..........४८५
• विषयमा •
द्वात्रिंशिका आपqules प्रवृत्ति ५९ सदोष ............. ४८८ | | तपसः क्षायोपशमिकत्वसाधनम् .................. ५१४ यज्ञीयहिंसायामौत्सर्गिकदोषस्याऽपरिहार्यता ....... ४९० | दुःखत्वेन प्रतिभासेऽपि तपःसाफल्यम् ............ ५१५ ३पान सोष ....
.. ४८० | बौद्धमतेऽपि तपसः कर्तव्यता ................ ५१६ मद्यपानस्य हेयता.................................... ४९१ | | बौद्ध-जैनतन्त्रे निर्निदानतपसः कर्तव्यता ....... ५१७ मद्यपानदोषषोडशकोपदर्शनम् ..
.............
| नानातन्त्रानुसारेण तपाप्रकारप्रदर्शनम् ........... ५१८ मद्यपमहर्षिकथानकोपदर्शनम् .................. ४९३ | तपसो निर्जराकारकत्वसिद्धिः .................. भद्यपानथी संन्यासी भ्रष्ट.............. ४८3 तपासाफल्यपरामर्शः.
....... ५२० सप्तव्यसननिर्देशः
४९४ | शान२लित या स३१ नथी ................ ५२० मैथुनस्य सदोषता .................................
लौकिकदयाविचार...........
............ ५२१ भैथुन सेवन नुशान1२४ ................. दयामीमांसा ..........
.... ५२२ मैथुनकारिणो लक्षपृथक्त्वजीवहिंसकता ......... ४९६ | निश्चय-व्यवहारसंमतदयाविचारः ................. ५२३ ऋतुकालीनमैथुनविचार. ......................... ४९७
गुरुपारतन्त्र्यतः प्रधानद्रव्यसम्यक्त्वम् ............... ५२४ धनिमित्त मैथुन ५९सहोप .............
व्यवहार-निश्चयथा ध्यानुं स्१३५ ............ ५२४ वंशाऽवर्धकत्वेऽपि ब्रह्मचारिणः स्वर्गगमनम् ...... ४९८
व्यवहारनयसम्मतदयादर्शनम् ....................... ५२५ बहुपुत्राणामपि दुर्गतिगामित्वम् .................. ४९९
| निश्चयनयसंमतदयोपदर्शनम् ..................... ५२६ कामोद्रेकस्य विकारविशेषकारित्वम् .......... ५००
| नैगमनयसम्मतहिंसाप्रदर्शनम् ................... ५२७ मैथुनस्य देहस्थितिनिर्वाहकत्वाऽनियमः ........... ५०१ | मने नयथी. सि विया२५॥ ........... પ૨૭ 'वेदं अधीत्य स्नायात्' पस्यवियार
| सङ्ग्रह-व्यवहारनयसंमतदयाविचारः .............. ५२८ ब्रह्मचारिणोऽपि संन्यासाधिकारित्वम् ............ ५०२ | डिंस | मठिसा - संपनिय............ ५२८ 'स्नायादेवे'त्यवधारणाऽसम्भवः ...................... ५०३ | ऋजुसूत्रादिनयाभिमतदयानिरूपणम् ................ ५२९ अदोषकीर्तने विध्युन्नयनापत्तिः ............ ५०४ यतनासत्त्वे साम्परायिककर्मबन्धाऽयोगः ......... ५३० मैथुनस्य बीजरक्षाकारित्वविधानमसङ्गतम् ....... ५०५ | अध्यात्मविशुद्ध्यिा अहिंसकता ................. ५३१ मांसभक्षणादिनिवृत्तेर्महाफलत्वविमर्शः ............. ५०६ | प्रमादाऽप्रमादयोः हिसाऽहिंसाकारणता ........... ५३२ भंडातवाहीमत नि२।७२९.................. ५०६ | | डिंसान पाय-मांतर स्१३५ ................ ५३२ अगम्यगमननिवृत्तेर्युक्तत्वस्थापनम् .................. ५०७ चैतन्यस्यैव कर्मबन्धनियामकता .................... ५३३ कामानामुपभोगैरशाम्यतोपदर्शनम् ................. ५०८
५०८ अंतरंग परिणाम ४ प्रभाभूत ............ પ૩૩ तपसो दुःखरूपतामीमांसा ...........................
५०९ | स्वपरिणामविशुद्धिकृते यतनाऽऽवश्यकता.......... ५३४ तपश्चर्या अंग बौद्ध मत .............. ५०८ मामसि या वालपती ............. ५३४ तपसः कर्मविपाकरूपताविमर्शः .................. ५१० | निश्चयस्य हेतु-स्वरूपाऽनुबन्धशुद्धता .......... ५३५ यथासमाधि तपसः कर्तव्यता ..................... ... ५११
| निश्चय-व्यवहार- संतुलन ................... ५३५ त५ मा बौद्ध भतर्नु न२।७२९............. ५११ / क्रियानिरपेक्षशुद्धपरिणामपक्षस्यानुपादेयता ......... ५३६ इष्टफलसिद्धौ कायपीडा न दुःखदा ........... ५१२ | निश्चय मामासथी सावधान ! ............. ५३६ रत्नवणिगुदाहरणम् ....................................... ५१३ | लोक-देह-शास्त्रवासनात्यागोपदेशः ..................... ५३७
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