Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh
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.४३२
24 • विषयमाहाश! .
द्वात्रिंशिका भिक्षाशुद्धित्रैविध्यमीमांसा ................. ४०१ | ..... तो गुलि घटे ................... ४२४ अविरततपसो महागुणत्वाऽभावः ............... ४०२ | गुणश्रेणीहानिसम्पादकविचारः .
.................... ४२५ पौरुषनी भिक्षा ...........................४०२ | वैराग्यव्याख्योपदर्शनम् ................................ ४२६ अष्टकानुसारेण पौरुषघ्नीभिक्षास्वरूपम् ..........
४०३ | वैराश्यना १ २ ...................... ४२६ पौरुषघ्या धर्मलाघवम् ...........
| दुःखगर्भवैराग्यस्याऽऽर्तध्यानरूपता ................... ४२७ वृत्ति मिक्षा ............ .............
| दु:५५मित वै२।२५ ६२४................ ४२७ वृत्तिभिक्षाधिकारिनिवेदनम् .............. ............४०५ | दुःखगर्भवैराग्यलक्षणावली
.............४२८ सिद्धपुत्रादिस्वरूपमीमांसा
| भोगमित वै२।२५ मायद तावतुल्य ....... ४२८ अनुकम्पानिमित्तविचारः ...................... | मोहगर्भवैराग्यस्याऽपायशक्तिसमेतत्वमेव
............४२९ अष्टकवृत्तिकृद्वचनमीमांसा .............. | स्याद्वादबोधस्य तृतीयवैराग्यप्रापकत्वम् ........... ४३० सर्वसंपत्री माथी साधुप पूर्ण .....
| शनिगमित वैशय मोक्षहाय............... ४० भिक्षया साधुसामग्र्यलाभविचारः
ज्ञानस्य वैराग्यवर्धकत्वविमर्शः .................. ४३१ निर्दोषभिक्षालाभाऽसम्भवविचारः .................
ગુરુસમર્પણભાવનો પ્રભાવ.
૪૩૧ અસંકલ્પિત નિર્દોષ ગોચરી મળવી
आद्यवैराग्यद्वयस्य कथञ्चिदुपादेयत्वम् ........... सशस्य - पूर्व५६ ...........
| ज्ञानगर्भवैराग्यलक्षणावल्यावेदनम् .................. ४३३ शेषभोजनं गृहस्थधर्मः
भावविशुद्धिमीमांसा ...
४३४ यावदर्थिकविषयविमर्शः
| SA मावशुद्धि ५९अमान्य ......... ४३४ पुण्यार्थपिण्डविषयविमर्शः ......
मार्गव्याख्याविद्योतनम् ................................ ४३५ असङ्कल्पितपिण्डलाभविचारः .............. | गुणवत्पारतत्र्यस्य मोहोच्छेदकता ................ ४३६ અસંકલ્પિત ગોચરી મળવી શક્ય -ઉત્તરપક્ષ . ૪૧૪ | 'क्षमाश्रमणहस्तेन' इतिवचनप्रयोजनद्योतनम् ...... ४३७ दुष्टसङ्कल्पविचारः .........
| गुणिपारतन्त्र्यस्यातिचारशोधकता ................... ४३८ आरम्भाऽप्रयोजकसदाशयस्याऽदुष्टता ............... ४१६ प्रवचनप्रभावनायाः तीर्थकृन्नामकर्मबन्धकता ....... ४३९ पञ्चाशकवृत्तिसंवादद्योतनम् .
| यदी, शासनप्रमानाने भोपामे.......... ४३८ सूतकादिविचारः ...
| सम्यक्त्वदीपकगुणद्योतनम् .. ......................... ४४० पञ्चाशकसंवाददर्शनम् ....................
४१९ शासनमालिन्ये नियमेन मिथ्यात्वम् ............. ४४१ असङ्कल्पितपिण्डलाभपरामर्शः ................... | जिनशासननिन्दकस्य नीचैर्गोत्रबन्धकता .......... ४४२ मोक्षस्य दुर्लभता -
| गुणिपारतन्त्र्ये गुणसामग्यम् ................. ४४३ दुष्करसाधनसाध्यतासमर्थनम् ................ | ज्ञान-भिक्षा-वैराग्यशुद्ध्या परमानन्दसम्भवः ...... ४४४ संयम मात६५२ ........................... ४२१ | अयू विया।.......................... ४४५ सातिशयज्ञानकारणानां चतुर्विधत्वम् ............ ४२२ |
| यसो हयने मावित रीमे ............ ४४६ परिणामे कर्मबन्धकारणता ......................... ४२३ ७- धर्मव्यवस्था द्वात्रिंशिका અનવસ્થા દોષ બળવાન ................ ४२3 | अन्योन्याश्रयपरिहारः ................................. ४४७
अशठगीतार्थयतनाया दोषावहत्वाऽसम्भवः ........ ४२४ | मांस भक्ष्य छ - नौद्ध .................... ४४७ Jain Education International
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