Book Title: Dwatrinshada Dwatrinshika Prakran Part 2
Author(s): Yashovijay Upadhyay, Yashovijay of Jayaghoshsuri
Publisher: Andheri Jain Sangh

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Page 23
________________ द्वात्रिंशिका mr m mr 303 ३२७ mr ३०४ ३०५ | m m 306 ३०७ m m m mm ३१२ દ્વત્રિશદ્ દ્વાર્નાિશિકાપ્રકરણ બીજા ભાગની વિષયમાર્ગદર્શિક ५- भक्तिद्वात्रिंशिका | प्रतिष्ठास्वरूपमीमांसा २५ द्रव्य-भावस्तवोत्कीर्तनम् .............................. ३०३ औपचारिकप्रतिष्ठाविमर्शः ................... દ્રવ્યસ્તવના અધિકાર ................ | द्विविधोपचरितस्वभावविभावनम् ................ जिनालयकारणाधिकारिस्वरूपवर्णनम् ............... | परज्ञता-परदर्शकत्वस्वभावविचारः ............. जिनगृहभूमिपरीक्षणम् ............. | प्रतिष्ठितबिम्बपूजकफललाभविचार ................ भूमिशुद्धिकारकहेतुत्रयविभावनम् .. ............... ३०६ | सरागदेवप्रतिष्ठाया असम्भवः ................ सप्रीतिपरिहार शुभानु५ ४............ | अहङ्कारादिरूपसन्निधानापाकरणम् ................ ३३१ बोधिवृद्धिविचारः ..................................... | प्राचीन नैयायिमतर्नु नि२।७२५५ ............. 33१ प्रत्ययत्रैविध्यद्योतनम | प्रतिमायां देवसान्निध्यविचारः .................... ३३२ जिनालयकर्मकराणां धर्ममित्रता ....... ३०९ | रागादेर्दूषणत्वस्थापनम् . ............................. ३३३ त्रिविधशुद्धिप्रदर्शनम् ... ......... ३१० | असर्वज्ञदेवप्रतिष्ठामीमांसा ........................... ३३४ पञ्चविधशुद्धिप्रज्ञापनम ३११ | ज्ञानादेः पूजाफलप्रयोजकत्वाऽसम्भवः ....... ३३५ द्रव्यस्त ५५ मावस्त बने..... ૩૧૧ | प्रतिष्ठितत्वज्ञानाभावे फलविशेषाभावविचारः .... ३३६ द्रव्यहिंसाया एकान्तेनाऽशोभनत्वाभावः ......... | प्रतिष्ठास्थले नव्यनैयायिकमतनिरासः ............. ३३७ द्रव्य-भावयोरन्योऽन्यसमनुवेधः ................ ......... ३१३ | अदृष्टस्य पूज्यताप्रयोजकत्वाऽसम्भवः ............ ३३८ चित्तकालुष्यपरिहारोपदेशः | प्रतिष्ठाविधिजनितशक्तिमीमांसा ..................... ३३९ फलस्योत्साहानुसारित्वम् ....................... ३१५ | तत्त्वार्थतामा२नो मत .................... 33८ शिल्पिन्यप्रीतिर्जिनाऽप्रीत्याक्षेपिका ................. ३१६ | प्रतिष्ठाध्वंसस्य पूज्यत्वप्रयोजकत्वमीमांसा ........ ३४० दौहृदोत्थापनमीमांसा ३१७ | जयदेवमिश्राभिप्रायाऽऽविष्करणम् ................... ३४१ दौहृदाऽपूर्तावपायोपदर्शनम् ... .........३१८ | तत्पयिंताम15२ना मतनुं नि२४२९! ........ 3४१ ભાવશુદ્ધિને ઓળખીએ | प्रतिष्ठायाः प्रतिबन्धकतापादनम् ................. ३४२ मन्त्रन्यासाऽऽवेदनम् .............................. ३१९ | गङ्गेशस्यऽपूर्वोच्छेदप्रसङ्गः ...................... ३४३ द्रव्यभावयोर्निर्जराकारणविमर्शः .................... खण्डितप्रतिष्ठितबिम्बपूजनफलविचारः ............. ३४४ लौकिक-लोकोत्तरफलविचारः ....................... | अङ्गवैकल्ये प्रधानाऽनिष्पत्तिः ...................... ३४५ सौमित्त२. अनुष्ठाननी मेरे। ........ ૩૨૧ | मंत्रन्यास पनि वगैरेनी मावश्यता ........ ३४५ प्रतिष्ठाविमर्शः जिनबिम्बविधापनद्वैविध्यम् ........ ३२२ | प्रतिष्ठायां बल्यादेरावश्यकतोपपादनम् ............. ३४६ व्यक्तिप्रतिष्ठास्वरूपमीमांसा .......................... ३२३ | स्थापनासत्य-भावसत्यस्थलीयव्यवहारभेदद्योतनम् .. ३४७ वचनानुष्ठान-समापत्तिभेदप्रकाशनम् ................ ३२४ | प्रतिष्ठितप्रतिमायां जलाभिषेकादिसमर्थनम् ...... ३४८ પોતાનામાં વિશિષ્ટ प्रतिमाऽभिषेकादेर्निर्दोषताद्योतनम् ... .............. ३४९ परिमनी स्थापन प्रतिभा ........ 3२४ | पञ्चविधाभिगमाविष्करणम .......................... ३५० For Private & Personal Use Only ३१४ ........ ....................... ............... r m ३२१ mm m mr mm Jain Education International www.jainelibrary.org

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