Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 13
________________ से आत्मा ही मोक्ष का कारण होता है। जीव आदि पर श्रद्धा सम्यक्त्व है। वह सम्यक्त्व रत्नत्रययुक्त आत्मा का स्वरूप ही है। सम्यक्त्व विद्यमान होने पर तार्किक दोष से रहित ज्ञान भी सम्यक् अध्यात्म दृष्टिवाला हो जाता है। अशुभ भाव से निवृत्ति और शुभ भाव में प्रवृत्ति व्यवहारनय से चारित्र है। वह चारित्र व्रत, समिति और गुप्ति से युक्त होता है। संसार के कारणों का विनाश करने के लिए ज्ञानी के जो बाह्य (शुभ-अशुभात्मक) और अंतरंग विकल्पात्मक क्रियाओं का निरोध है वह उत्कृष्ट सम्यक्चारित्र है। चूँकि दो प्रकार के (निश्चय और व्यवहार रूप) मोक्ष के कारण को मुनि ध्यान में अनिवार्य रूप से प्राप्त करते हैं इसलिए अनवरत प्रयास सहित चित्त से ध्यान का खूब अभ्यास करना चाहिये। अद्भुत ध्यान की सम्पन्नता के लिए तो स्थिर चित्त करो और उसके लिये इष्ट-अनिष्ट पदार्थों में तादात्म्य करके मूर्च्छित मत होवो, आसक्त मत होवो और उन पर दोष मत थोपो। किसी पदार्थ का थोड़ा भी ध्यान करते हुए एकाग्रता को प्राप्त करके साधुजन निष्काम वृत्तिवाले हो जाते हैं तब उनके उस ध्यान को निश्चय ध्यान कहा गया है। कुछ भी काय की क्रिया मत करो, कुछ भी मत बोलो, कुछ भी विचार मत करो जिससे आत्मा आत्मामें तृप्त हुआ स्थिर हो जाता है। यही सर्वोत्तम/उत्कृष्ट ध्यान होता है। द्रव्यसंग्रह में जो पारिभाषिक शब्दावली आई है, उसकी व्याख्या करने का हमने प्रयत्न नहीं किया है, उसको पं. चैनसुखदास न्यायतीर्थ के द्वारा संपादित 'अर्हत् प्रवचन' से, श्री ब्रह्मदेव की टीका से तथा श्री जयचन्द जी छाबड़ा की ढूँढारी भाषा की टीका से समझा जा सकता है। हमारा मूल उद्देश्य यहाँ द्रव्यसंग्रह के माध्यम से प्राकृत सिखाना है। (4) ducation International For Personal & Private Use Only www द्रव्यसंग्रह

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