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56. मा विद्वत या जंगह मा चिनात् किंचि जेष्ठ होड़ थि।
56. मा चिट्ठह मा जंपह मा चिंतह किंवि जेण होइ थिरो।
अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे ज्झाणं।।
मत
मा चिट्ठह
जंपह
चिंतह
काय की क्रिया करो मत बोलो मत विचार करो कुछ भी जिससे होता है
किंवि
जेण
होइ
थिरो
अव्यय (चिट्ठ) विधि 2/2 अक अव्यय (जंप) विधि 2/2 सक अव्यय (चिंत) विधि 2/2 अक अव्यय अव्यय (हो) व 3/1 अक (थिर) 1/1 वि (अप्प) 1/1 (अप्प) 7/1 वि (रअ) भूकृ 1/1 अनि [(इणं)+ (एव)] इणं (इम) 1/1 सवि एव (अ) = ही (पर) 1/1 वि (हव) व 3/1 अक (ज्झाण) 1/1
स्थिर
अप्पा अप्पम्मि
आत्मा आत्मा में तृप्त हुआ
रओ
इणमेव
यह
हवे
सर्वोत्तम/उत्कृष्ट होता है ध्यान
ज्झाणं
अन्वय- किंवि मा चिट्ठह मा जंपह मा चिंतह जेण अप्पा अप्पम्मि रओ थिरो होइ इणमेव परं ज्झाणं हवे।
___ अर्थ- कुछ भी काय की क्रिया मत करो, कुछ भी मत बोलो, कुछ भी विचार मत करो जिससे (जिसके फलस्वरूप) आत्मा आत्मामें तृप्त हुआ स्थिर हो जाता है। यह ही सर्वोत्तम/उत्कृष्ट ध्यान होता है।
प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-679।
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