Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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48. मा मुज्झह मा रज्जह मा दूसह इट्ठणि?अढेसु।
थिरमिच्छहि जइ चित्तं विचित्तझाणप्पसिद्धीए।।
49. पणतीससोलछप्पणचउद्गमेगं च जवह ज्झाएह।
परमेट्ठिवाचयाणं अण्णं च गुरूवएसेण।।
50. णट्ठचघाइकम्मो दसणसुहणाणवीरियमईओ।
सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचिंतिज्जो।।
51. णट्ठट्टकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा।
पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो।।
52. सणणाणपहाणे वीरियचारित्तवरतवायारे।
अप्पं परं च जुंजइ सो आइरिओ मुणी झेओ।।
53. जो रयणत्तयजुत्तो णिच्चं धम्मोवदेसणे णिरदो।
सो उवज्झाओ अप्पा जदिवरवसहो णमो तस्स।
54. दंसणणाणसमग्गं मग्गं मोक्खस्स जो हु चारित्तं।
साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स।।
55. जं किंचिवि चिंतंतो णिरीहवित्ती हवे जदा साहू।
लखूण य एयत्तं तदाह तं तस्स णिच्छयं ज्झाणं।।
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