Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 105
________________ किंचूण केवलि गुरु चरम कुछ कम केवली बड़ा अंतिम छदमस्थ जाननेवाला जितना छदमत्थ जाणअ जावदिय 20, 27 जोग्ग योग्य जाणा 39 Hulit hallella e 14 णाणी णिअ णिक्कम्म णिच्च णिच्चसुद्ध णिच्छय णिम्मण अनेक ज्ञानी अपनी कर्म से मुक्त नित्य सम्यक् (सदैव शुद्ध) निश्चय मनरहित तत्पर/तल्लीन निष्काम अल्प तीन में तल्लीन तीन के समूहयुक्त स्थिर णिरद 53,57 णिरीह तणु त्तियणिरद त्तियमइअ थिर 39,40 48, 56 (96) द्रव्यसंग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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