Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 84
________________ 32. बज्झदि कम्मं जेण द चेदणभावेण भावबंधो सो। कम्मादपदेसाणं अण्णोण्णपवेसणं इदरो। 33. पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदा दु चदुविधो बंधो। जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होति।। 34. चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेद। सो भावसंवरो खलु दव्वासवरोहणे अण्णो।। 35. वदसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसहजओ य। चारित्तं बहुभेया णायव्वा भावसंवरविसेसा।। 36. जह कालेण तवेण य भुत्तरसं कम्मपुग्गलं जेण। भावेण सडदि णेया तस्सडणं चेदि णिज्जरा दुविहा।। 37. सव्वस्स कम्मणो जो खयहेदू अप्पणो ह परिणामो। णेयो स भावमुक्खो दव्वविमुक्खो य कम्मपुहभावो।। 38. सुहअसुहभावजुत्ता पुण्णं पावं हवंति खलु जीवा। सादं सुहाउ णामं गोदं पुण्णं पराणि पावं च।। 39. सम्मइंसणणाणं चरणं मोक्खस्स कारणं जाणे। ववहारा णिच्छयदो तत्तियमइओ णिओ अप्पा।। द्रव्यसग्रह Jain EducaSn International For Personal & Private Use Only www.jainelib (75)

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