Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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मूल पाठ
1.
जीवमजीवं दव्वं जिणवरवसहेण जेण णिद्दिढें। देविंदविंदवंदं वंदे तं सव्वदा सिरसा।।
जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेहपरिमाणो। भोत्ता संसारत्थो सिद्धो सो विस्स सोडगई।।
3. तिक्काले चदपाणा इंदियबलमाउआणपाणो य।
ववहारा सा जीवो णिच्छयणयदो दु चेदणा जस्स।।
उवओगो दुवियप्पो दंसणणाणं च दंसणं चधा। चक्खु अचक्खू ओही दंसणमध केवलं णेयं।।
5.
णाणं अट्ठवियप्पं मदिसुदिओही अणाणणाणाणि। मणपज्जयकेवलमवि पच्चक्खपरोक्खभेयं च।।
6.
अट्ठ चदु णाण सण सामण्णं जीवलक्खणं भणियं। ववहारा सुद्धणया सुद्धं पुण दंसणं णाणं।।
7. वण्ण रस पंच गंधा दो फासा अट्ट णिच्छया जीवे।
णो संति अमुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधादो।।
द्रव्यसंग्रह
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