Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 76
________________ 55. जं किंचिवि चिंतंतो णिरीहवित्ती हवे जदा साह। लभ्रूण य एयत्तं तदाहु तं तस्स णिच्छयं ज्झाणं।। किंचिवि चिंतंतो णिरीहवित्ती जिस किसी का थोड़ा भी ध्यान करता हुआ निष्काम वृत्तिवाला हवे जदा साहू लद्धण (ज) 2/1 सवि अव्यय (चिंत) वकृ 1/1 सक {[(णिरीह) वि-(वित्ति) 1/1] वि} (हव) व 3/1 अक अव्यय (साहु) 1/1 (लद्धूण) संकृ अनि अव्यय (एयत्त) 2/1 [(तदा)+(आहु)] तदा (अ) = तब आहु (आहु) 3/1 सक (त) 2/1 सवि (त) 6/1 सवि (णिच्छय) 2/1 वि (ज्झाण) 2/1 हो जाता है जब साधु प्राप्त करके पादपूर्ति एकाग्रता को एयत्तं तदाहु तब कहा तस्स णिच्छयं उसको उसके निश्चय ध्यान ज्झाणं अन्वय- जदा साहू जं किंचिवि चिंतंतो एयत्तं लद्धण णिरीहवित्ती हवे य तस्स तं णिच्छयं ज्झाणं तदाहु। अर्थ- जब साधु जिस किसी (पदार्थ) का थोड़ा भी ध्यान करते हुए एकाग्रता को प्राप्त करके निष्काम वृत्तिवाले हो जाते हैं तब उनके उस ध्यान को (जिनवरों ने) निश्चय (ध्यान) कहा। 1. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-679। 2. प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पिशल, पृष्ठ-7551 JOHTemational Jafft Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibra(67)

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