Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 75
________________ 54. दंसणणाणसमग्गं मग्गं मोक्खस्स जो ह चारितं । साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स ।। दंसणणाणसमग्गं मगं मोक्खस्स जो 5 co हु चारित्तं साधयदि णिच्चसुद्धं साहू स मुणी णमो तस्स' 1. [ ( दंसण) - ( णाण) ( समग्ग) 1 / 1 वि] ( मग्ग) 2 / 1 (मोक्ख) 6/1 (ज) 1 / 1 सवि अव्यय (चारित) 2 / 1 ( साधय) व 3 / 1 सक ( णिच्चसुद्ध) 2/1 वि (66) Jain Education International ( साहु) 1 / 1 (त) 1/1 सवि (मुणि) 1/1 अव्यय (त) सवि 4 / 1 'णमो' के योग में चतुर्थी होती है। अन्वय- जो दंसणणाणसमग्गं मोक्खस्स मग्गं णिच्चसुद्धं चारित्तं साधयदि ह स मुणी साहू तस्स णमो । अर्थ- जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान से युक्त मोक्ष के साधन सम्यक् (सदैव शुद्ध) चारित्र को पालते हैं, निश्चय ही वह मुनि साधु (परमेष्ठी) (हैं), उनको नमस्कार । दर्शन, ज्ञान से युक्त साधन मोक्ष के जो For Personal & Private Use Only निश्चय ही चारित्र को पालते हैं सम्यक् (सदैव शुद्ध) साधु वह मुनि नमस्कार उसको द्रव्यसंग्रह www.jainelibrary.org

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