________________
52.
दंसणणाणपहाणे वीरियचारित्तवरतवायारे। अप्पं परं च जुंजइ सो आइरिओ मुणी झेओ।।
दंसणणाणपहाणे
प्रधान
वीरियचारित्तवरतवायारे
अप्पं
[(दसण)-(णाण)- दर्शन, ज्ञान (पहाण) 7/1 वि] [(वीरियचारित्तवरतव) +(आयारे)] [(वीरिय)-(चारित्त)-(वर) वि वीर्य, श्रेष्ठ चारित्र, -(तव)-(आयार) 7/1] तपाचार में (अप्प) 2/1
स्वयं को (पर) 2/1 वि
पर को अव्यय
और (मुंज) व 3/1 सक जोड़ता है (त) 1/1 सवि
वह (आइरिअ) 1/1
आचार्य (मुणि) 1/1 (झेअ) विधिकृ 1/1 अनि ध्यान किया जाना
चाहिये
जुंजइ
आइरिओ मुणी झेओ
मुनि
अन्वय- दंसणणाणपहाणे वीरियचारित्तवरतवायारे अप्पं च परं जुंजइ सो आइरिओ मुणी झेओ।
अर्थ- (जो) दर्शन (सम्यग्), ज्ञान (सम्यग्) प्रधान वीर्याचार, श्रेष्ठ चारित्राचार और तपाचार में स्वयं को और पर को जोड़ते हैं वे आचार्य मुनि ध्यान किये जाने चाहिये।
04
द्रव्यसंग्रह
JA
Education International
For Personal & Private Use Only