Book Title: Dravyasangraha
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 71
________________ 50. णट्टचदुघाइकम्मो दसणसुहणाणवीरियमईओ। सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचिंतिज्जो।। णठ्ठचदुघाइकम्मो दंसणसुहणाणवीरियमईओ सुहदेहत्थो [(ण) भूक अनि-(चदु) वि- समाप्त कर दिए गए है (घाइ)-(कम्म) 1/1] चार घातिया कर्म [(दसण)-(सुह)-(णाण) दर्शन, सुख, ज्ञान -(वीरियमईअ) 1/1 वि] वीर्य से युक्त [(सुह) वि-(देहत्थ) कल्याणकारी देह 1/1 वि] में स्थित (अप्प) 1/1 आत्मा (सुद्ध) 1/1 वि शुद्ध (अरिह) 1/1 अरिहंत (विचिंत) विधिकृ 1/1 सक समझी जानी चाहिए अप्पा सुद्धो अरिहो विचिंतिज्जो अन्वय- णट्ठचदुघाइकम्मो दंसणसुहणाणवीरियमईओ सुहदेहत्थो सुद्धो अप्पा अरिहो विचिंतिज्जो। अर्थ- (जिसके द्वारा) चार घातिया कर्म समाप्त कर दिए गए है (जो) दर्शन- सुख-ज्ञान-वीर्य (अनंत चतुष्टय) से युक्त है, कल्याणकारी देह में स्थित है (वह) शुद्ध आत्मा अरिहंत समझी जानी चाहिए। (62) द्रव्यसंग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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