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51. णट्ठट्ठकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा।
पुरिसायारो अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो।।
णट्टकम्मदेहो
लोयालोयस्स
जाणओ दष्ट्य पुरिसायारो
[(ण)+ (अट्ठकम्मदेहो)] [(णट्ठ) भूकृ अनि-(अट्ठ) वि- त्याग दिया गया है (कम्म)-(देह) 1/1] आठ कर्मरूपी शरीर [(लोय)+(अलोयस्स)] [(लोय)-(अलोय) 6/1] लोक और अलोक के (जाणअ) 1/1 वि जाननेवाले (दछु) 1/1 वि
देखनेवाले [(पुरिस)+(आयारो)] [(पुरिस)-(आयार) 1/1] पुरुषाकार (अप्प) 1/1
आत्मा (सिद्ध) 1/1 वि
सिद्ध (झाअ) विधि 2/2 सक ध्यान करो [(लोय)-(सिहरत्थ) - लोक के शिखर पर 1/1]
स्थित
अप्पा सिद्धो झाएह लोयसिहरत्थो
अन्वय- णट्टकम्मदेहो लोयालोयस्स जाणओ दट्ठा पुरिसायारो अप्पा सिद्धो लोयसिहरत्थो झाएह।
___अर्थ- (जिनके द्वारा) आठ कर्मरूपी शरीर त्याग दिया गया है, (जो) लोक और अलोक को जाननेवाले, देखनेवाले, पुरुषाकार आत्मा हैं (वे) सिद्ध (हैं) (तथा) लोक के शिखर पर स्थित हैं)। (उनका) (तुम सब) ध्यान करो।
1.
झा- झाअ (अकारान्त धातुओं के अतिरिक्त अन्य) स्वरान्त धातुओं में विकल्प से अ जोड़ा जाता है।
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