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42. संसयविमोहविन्भमविवज्जियं अप्पपरसरूवस्स।
गहणं सम्मण्णाणं सायारमणेयभेयं तु।।
संशय, मोह, भ्रम-रहित
आत्मा , पर के स्वरूप का
संसयविमोह [(संसय)-(विमोह)विब्भमविवज्जियं (विब्भम)-(विवज्जिय)
भूकृ 1/1 अनि] अप्पपरसरूवस्स [(अप्प)-(पर) वि
(सरूव) 6/1]
(गहण) 1/1 सम्मण्णाणं (सम्मण्णाण) 1/1 सायारमणेयभेयं [(सायारं)+ (अणेयभेयं)]
सायारं (सायार) 1/1 वि {[(अणेय) वि(भेय) 1/1] वि}
गहणं
ज्ञान
सम्यकज्ञान
साकार
और अनेक भेदवाला
अव्यय
और
अन्वय- अप्पपरसरूवस्स संसयविमोहविब्भमविवज्जियं गहणं सम्मण्णाणं सायारमणेयभेयं तु।
अर्थ- आत्मा (और) पर के स्वरूप का संशय (स्व-पर भेद में संदेह) रहित, मोह (स्व में मूर्छा) रहित, भ्रम (पर में तादात्म्य) रहित ज्ञान सम्यक्ज्ञान (है), (वह सम्यक्ज्ञान) साकार (विकल्पात्मक) और अनेक भेदवाला (है)।
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द्रव्यसंग्रह
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